Tuesday, 18 October 2016

Falsafe


निगाहोँ मेँ उनके कुछ फलसफ़े थे ,
उखड़े -बिखरे सही , फिर भी सजे थे
हमने चाहा कि पढ़ जाऍ उन्हेँ ,
लेकिन आँखोँ मेँ तो बस परछाई थी ,
हक़ीकत तो दिल मेँ दबे थे ।।
हमेँ भी तो निगाहोँ से उलझकर ,
दिल मेँ उतरने की जिद थी ...
मंजिल तो हमेँ मिल ही जाती ,
लेकिन , राहोँ मेँ हमारी
मोहब्बत की टूटी तस्वीर थी ।।
हमने तो सहेज़ लिया उन
टूटी तस्वीरोँ को भी ...
आख़िर उनमेँ ही तो हमारी
बिखरी हुई तकदीर थी ।।
हमने तो कोशिश बार - बार की मगर
शायद बीच मेँ ही कहीँ कटी हुई
हमारे भाग्य की लकीर थी ...
जब भी कभी हमारे
मिलने की तदबीर थी
हमारी आँखोँ मेँ नमी औ
उनकी आँखोँ मेँ पीङ थी ।।
उलझकर रह गए थे हम
अपने ही ख्बाबोँ मेँ
हमेँ उतरना था उनके दिल मेँ ,
और हम डूब रहे थे ,
उनके ही निगाहोँ मेँ ...
निगाहोँ मेँ उनके कुछ फलसफ़े थे
उखड़े - बिखरे सही , फिर भी सजे थे ... ।।