बीजापुर कर्नाटक प्रान्त का एक शहर है। यह आदिलशाही बीजापुर सल्तनत की राजधान भी रहा है। बहमनी सल्तनत के
अन्दर बीजापुर एक प्रान्त था। बंगलौर के उत्तर पश्चिम में स्थित बीजापुर कर्नाटक का प्राचीन नगर है।
दक्षिण भारतीय वास्तुकला शली में
निर्मित यहां के स्मारक शहर के मुख्य आकर्षण हैं। दक्षिण भारत में पांच हिन्दु
शासन के पतन के कारण बीजापुर समेत पांच राज्यों का उदय हुआ। 1489 से 1686 तक यह नगर
आदिलशाही वंश की राजधानी थी। शहर की अनेक मस्जिद, मकबर,
महल और किले पर्यटकों को खासे आकर्षित करते हैं। यहां का गुम्बद
विश्व का दूसरा सबसे विशाल गुम्बद है। कर्नाटक की कला और संस्कृति में बीजापुर का
विशेष योगदान रहा है।
आकर्षण के मुख्य केंद्र
गोल गुम्बद
आदिलशाही वंश के सातवें शासक मुहम्मद आदिल शाह का यह
मकबरा बीजापुर का मुख्य आकर्षण है। विश्व के इस दूसरे सबसे विशाल गुम्बद का व्यास 44
मीटर और ऊंचाई 51 मीटर है। इस विशाल गुम्बद के
बनने में बीस वर्ष का समय लगा था। इस मकबरे का सबसे बड़ा आश्चर्य यह है कि इसमें
सहारे के लिए एक भी कॉलम नहीं है।
जुम्मा मस्जिद
इस
मस्जिद को बीजापुर की सबसे विशाल और भारत प्रथम मस्जिद कहा जाता है। इसका निर्माण
आदिल शाह के काल में 1557 से 1686
के बीच हुआ था। मस्जिद का कुल क्षेत्रफल 10810 वर्ग मीटर है जिसमें 9 विशाल तोरण शामिल हैं। मस्जिद
में सोने से लिखी पवित्र कुरान की एक प्रति रखी हुई है।
इब्राहिम रोजा
शहर
के पश्चिमी छोर पर बना इब्राहिम रोजा एक खूबसूरत मकबरा है। इब्राहिम आदिल शाह
द्वितीय के इस मकबरे से ताजमहल बनाने की प्रेरणा ली गई थी। इसकी दीवारों को काफी
सुंदर तरीके से सजाया गया है। साथ ही इसकी पत्थर की खिड़कियां भी बहुत आकर्षक हैं।
इस स्मारक ईरान के शिल्पकारों ने बनाया था। इसके समीप ही एक मस्जिद भी है .
मलिक-ए-मदान
यह
मध्यकाल में विश्व की सबसे बड़ी तोप थी। यह तोप 14
फीट लंबी और इसका वजन 55 टन है। एक चबूतरे पर
रखी इस तोप का नोजल सिंह के सिर के आकार का है। इस तोप का वार ट्रॉफी के रूप में 1549
में बीजापुर लाया गया था। कहा जाता है इसे छूकर किसी चीज की कामना
करने पर वह प्राप्त होती है।
बीजापुर किला
16 वीं शताब्दी का यह किला बीजापुर आने वाले सैलानियों को अपनी लोकेशन के
कारण काफी आकर्षित करता है। यह किला वन्य जीव अभयारण्य के समीप है, जहां तेन्दुए, जंगली सूकर, नीलगाय
और हिरन विचरण करते रहते हैं। महाराज प्रताप सिंह के छोटे भाई राव शक्ति सिंह
द्वारा बनवाए गए इस किले को अब हेरिटेज होटल में तब्दील कर दिया गया है।
गगन महल
यह
भवन अली आदिल शाह प्रथम ने 1561 में
बनवाया था। इस महल को कुछ समय तक शाही महल के रूप में इस्तेमाल किया गया। इस महल
में तीन शानदार मेहराब हैं। बीच की मेहराब सबसे चौडी है। इसका भूमितल दरबार हॉल था
और प्रथम तल शाही परिवार का निवास स्थान था।
आनंद महल
इस
महल को आदिल शाह द्वितीय ने 1589 में
बनवाया था। दो मंजिल का यह महल कभी राजकीय परिवार की महिलाओं का गृह था। वर्तमान
में यह महल जिमखाना क्लब, इंस्पेक्शन बंगला, कुछ अन्य कार्यालय और सहायक कमिश्नर के क्वार्टर के रूप में तब्दील हो
चुका है।
असर महल
किले
के पूर्व में स्थित इस महल को मोहम्मद आदिल शाह ने लगभग 1646
ई. में न्याय के दरबार के रूप में इसे बनवाया था। महल के ऊपरी खंड
को अनेक भित्तिचित्रों से सजाया गया है। इन भित्तिचित्रों में फूल, पत्तियों के अलावा महिलाओं और पुरूषों को अनेक मुद्राओं में दर्शाया गया
है। महल के सामने एक वर्गाकार टैंक है।
बीजापुर किले
का इतिहास
आदिल शाही वंश के दौरान इस किले
का निर्माण किया गया। इस किले में अनेकों ऐसे ऐतिहासिक स्मारक है जिन्हें
वास्तुकला की दृष्टि से काफ़ी महत्व दिया गया है। इस किले के इलाके में लगभग 200 साल तक आदिल शाही ने शासन किया था। आलीशान किला और आजूबाजू के शहरों की इमारते
मध्यकालिक होने के कारण बीजापुर को दक्षिण भारत का आगरा भी कहा जाता है।
सम्मिलित रूप
से किला, गढ़ और अन्य स्मारकों का समृद्ध इतिहास बीजापुर शहर
के इतिहास में आता है, जिसका निर्माण 10-11 शताब्दी में कल्याणी चालुक्य के समय किया गया था। उस समय इसे विजयपुरा
(विजय का शहर)) कहा जाता था।
13 वी शताब्दी में
यह शहर खिलजी वंश
के राजा के नियंत्रण में था। 1347 में यहाँ के इलाके को
गुलबर्गा के बहमनी सुलतान ने जीत लिया था। उस दौरान शहर को विजापुर या बीजापुर कहा
जाता था।
जब किला बनाने
का काम शुरू किया गया तो किले को खास और शानदार बनाने के लिए पर्शिया तुर्की और
रोम से लोगों को बुलाया था।
युसूफ आदिल शाह जो तुर्की का
सुलतान मुराद 2 का लड़का था उसने 1481 में
सुलतान के बीदर दरबार में चलाया गया था। उस वक्त मोहम्मद 3 सुलतान
था। उस राज्य के प्रधान मंत्री महमूद गवान ने उसे गुलाम के रूप में खरीद लिया था।
राज्य के प्रति उसकी ईमानदारी और बहादुरी को देखकर 1481 में
उसे बीजापुर के गवर्नर पद पर नियुक्त किया गया था।
किला और गढ़
यानि अर्किला और फारुख महल का निर्माण उन्ही दिनों कराया गया था। उसके लिए पर्शिया, तुर्की और रोम से कारीगर और कुशल वास्तुकारों को किले के निर्माण के लिए
बुलाया गया था। आखिरकार युसूफ ने सुलतान के साम्राज्य से ख़ुद को अलग करके स्वतंत्र
होने की घोषणा की थी और 1489 में आदिल शाही वंश या बहमनी
राज्य की निर्मिती की थी।
इब्राहीम आदिल
शाह अपने पिता युसूफ आदिल शाह के 1510 में गुजरने के बाद सिंघासन पर आये। आदिल शाह की पत्नी पूंजी हिन्दू धर्म को
मानने वाले एक मराठा योद्धा की लड़की थी। युसूफ आदिल शाह के मरणोपरांत सिंघासन के
लिए कई युद्ध और प्रपंच हुए लेकिन पूंजी के दृढ निश्चय और बहादुरी के सामने सरे
प्रपंच असफल हो गये .
सिंघासन पर बैठने के बाद इब्राहीम
आदिल शाह ने अपनी माँ के बहादुरी के स्मृति चिन्ह के रूप में उस किले को बड़ा बनाने
का काम उसने किया और जामी मस्जिद का निर्माण कराया ।
इब्राहीम
आदिलशाह के बाद सिंघासन पर अली आदिल शाह 1 आया था। उसने
दक्खन में अन्य मुस्लिम शासक के साथ मिलकर काम किया था। उनमे अहमदनगर और बीदर के
शाही राज्य भी शामिल थे। अली ने किले के अन्दर और शहर में बहुत सारी इमारते बनाई
थी, जैसे की अली राजा (उसकी ख़ुद की कब्र), गगन महल, चाँद बावड़ी (एक बड़ा कुवा) और जामी मस्जिद।
अली आदिल शाह
के पुत्रविहीन होने के कारन उसके भतीजे इब्राहीम 2 को राजा बनाया गया था जो उम्र में बहुत छोटा था इसलिए उसके व्यस्क होने तक उसकी मा चाँद बीबी ने राज्य के
प्रतिनिधि के रूप में उसकी और राज्य दोनों की रक्षा की। वो उस समय बीजापुर की
राजप्रतिनिधि थी।
इब्राहीम
बहमनी राज्य का पाचवा राजा था साथ ही वो सहिष्णु होशियार भी था। उसने हिन्दू और मुस्लिम के बीच अच्छे सम्बन्ध
बनाने की कोशिश की थी। मुस्लिम के शिया सुन्नी संप्रदाय में भी अच्छे रिश्ते बनाए
थे जिसके कारण उसके राज्य में एकता निर्मित हो सकी थी। इसिलिए इतिहास में उसे
जगद्गुरु बादशाह कहते है।
उसने 46 साल तक शासन किया था। उसने उसके महल में हिन्दू देवी देवता के मंदिरे
बनवाये थे देवी सरस्वती और गणपति (बुद्धिमता की देवता) पर आधारित कविता की रचनाये
भी की थी। वो संगीत और शिक्षा के बहुत बड़े संरक्षक के रूप में उभर कर आये थे ।
उसने विश्व प्रसिद्ध गोल गुम्बज़ की निर्मिती की थी।
उसके शासन काल
में किले में एक जगह पर ‘मालिक ए मैदान’ नाम की बंदूके
रखने की जगह भी बनाई गयी थी। वहाँ पर आज
भी एक बंदूक जो 4।45 मीटर लम्बी है
देखने को मिलती है। वो बंदूक आज भी अच्छी हालत में देखने को मिलती है।
आदिल शाह जब
सत्ता के आखिरो दिनों में बीमार पड़ गया था तो उस समय उसकी बीवी बरिबा ने कुछ दिनों
के लिए राज्य को चलाया था। जब 1646 में वे मृत्यु को प्राप्त हुए।
इसी वजह से
उनका वंश कमजोर पड़ने लगा। अफजल खान के हारने के बाद बीजापुर काफ़ी कमजोर हो गया था
और उसकी 10,000 लोगों की बीजापुर की सेना पूरी तरह से हार
चुकी थी।
मराठा शासक छत्रपति शिवाजी महाराज ने बीजापुर पर कई बार हमले किए थे और बीजापुर को पूरी तरह से लुट लिया था।
लेकिन आखिरी में शिवाजी महाराज भी लड़ाई ख़तम करने पर राजी हो गए थे।लेकिन शिवाजी
महाराज की म्रत्यु के बाद औरंगजेब की सेना ने 1686
में बीजापुर को कब्जे में कर लिया था और उसके साथ ही आदिल शाही के
आखरी राजा सिकंदर आदिल शाह का अंत हो गया था।
और उसके साथ
ही 200 साल की आदिल शाही का अंत हो गया और सन 1686
से बीजापुर मुग़ल
साम्राज्य का हिस्सा बन बन गया था। आदिल शाह ने
उसके समय एक बारा कमान नाम का मकबरा बनाने की शुरुवात की थी लेकिन वो पूरा होने से
पहले ही उसकी मृत्यु हो गयी थी।
करीब दो
शताब्दी के बाद 1877 में जब अंग्रेजो का शासन काल में सुखा पड़ने के
कारण बीजापुर के शहर को सब ने छोड़ दिया था।
शहर में जितने
भी इमारते है वो अपने समय की यादों को खुद में सहेजते हुए अपने इतिहास को मुकम्मल
करते हैं । भव्य वास्तुकला की सुंदरता से सबको अपने प्रति आकर्षित करते है।
मुस्लिम राजा
ने जितने भी किले बनवाये उन्होंने इस्लाम धर्म पर ज्यादा ध्यान दिया था। लेकिन
बीजापुर का किला उन सब किले से बिलकुल हटके है, क्यूंकि इस बीजापुर के इस किले में हिन्दू देवी और देवता के भी मंदिरे देखने को मिलते है।
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