हमारे देश भारत को
त्योहारों की भूमि भी कहा जाता और यथार्थ यह सत्य भी है. बचपन से ही हम सब
दीपावली, दसहरा , ईद ,रमजान , छठ , भाई दूज , रक्षाबंधन , बैसाखी , गोवर्धन पूजा
और कितने ही पर्व – त्योहारों के किस्से-
कहानियां दादा-दादी, नाना-नानी से सुनते आये हैं और इनपर पर निबंध लिखते और पढ़ते
आये हैं. आज कल के बच्चे हमारे संस्कृति से, हमारी परम्पराओं से
अनभिज्ञ हैं.
एक कोशिश है मेरी की थोरा- बहुत ज्ञान जो मैंने अपने गुरु,
माता-पिता और बड़ो से प्राप्त किया है , उसे सबके साथ साझा करूं . आज शुरुआत करते
हैं हमारे दरवाज़े पर दस्तक दे रही दीवाली से ... जानते हैं
दीवाली और उससे जुडी कुछ बातों को ...
दीपावली, भारत में हिन्दुओं द्वारा
मनाया जाने वाला सबसे बड़ा त्योहार है। दीपों का खास पर्व होने के कारण इसे
दीपावली या दिवाली नाम दिया गया। दीपावली का मतलब होता है,
दीपों की अवली यानि पंक्ति।
इस प्रकार दीपों की पंक्तियों से सुसज्जित इस त्योहार को दीपावली कहा जाता है।
कार्तिक माह की अमावस्या को मनाया जाने वाला यह महापर्व,
अंधेरी रात को असंख्य
दीपों की रौशनी से प्रकाशमय कर देता है।
दीप जलाने की प्रथा के पीछे अलग-अलग कारण या कहानियां
हैं। जितने लोग उतनी बातें , जितने धर्म
उतनी मान्यताएँ .
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हिंदू मान्यताओं में राम भक्तों के अनुसार
कार्तिक अमावस्या को भगवान श्री रामचंद्रजी चौदह वर्ष का वनवास काटकर तथा असुरी
वृत्तियों के प्रतीक रावणादि का संहार करके अयोध्या लौटे थे। तब अयोध्यावासियों ने राम के राज्यारोहण पर
दीपमालाएं जलाकर महोत्सव मनाया था। इसीलिए दीपावली हिंदुओं के प्रमुख त्योहारों
में से एक है।
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कृष्ण भक्तिधारा के लोगों का मत है कि इस दिन
भगवान श्री कृष्ण ने अत्याचारी राजा नरकासुर का वध किया था। इस नृशंस राक्षस के वध
से जनता में अपार हर्ष फैल गया और प्रसन्नता से भरे लोगों ने घी के दीए जलाए।
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एक पौराणिक कथा के अनुसार विंष्णु ने नरसिंह
रुप धारणकर हिरण्यकश्यप का वध किया था तथा इसी दिन समुद्रमंथन के पश्चात लक्ष्मी व
धन्वंतरि प्रकट हुए।
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जैन मतावलंबियों के अनुसार चौबीसवें तीर्थंकर
महावीर स्वामी का निर्वाण दिवस भी दीपावली को ही है।
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सिक्खों के लिए भी दीवाली महत्त्वपूर्ण है
क्योंकि इसी दिन ही अमृतसर में 1577 में स्वर्ण मन्दिर का शिलान्यास हुआ था। इसके
अलावा 1619 में दीवाली के दिन सिक्खों के छठे गुरु हरगोबिन्द सिंह जी को जेल से रिहा
किया गया था।
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नेपालियों के लिए यह त्योहार इसलिए महान है
क्योंकि इस दिन से नेपाल संवत में नया वर्ष शुरू होता है।
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पंजाब में जन्मे स्वामी रामतीर्थ का जन्म व
महाप्रयाण दोनों दीपावली के दिन ही हुआ। इन्होंने दीपावली के दिन गंगातट पर स्नान
करते समय 'ओम' कहते हुए समाधि ले
ली।
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महर्षि दयानंद ने भारतीय संस्कृति के महान
जननायक बनकर दीपावली के दिन अजमेर के निकट अवसान लिया। इन्होंने आर्य समाज की
स्थापना की।
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हिंदुओं में इस दिन लक्ष्मी के पूजन का विशेष
विधान है। रात्रि के समय प्रत्येक घर में धनधान्य की अधिष्ठात्री देवी
महालक्ष्मीजी,विघ्न-विनाशक गणेश जी और विद्या एवं कला की देवी मातेश्वरी
सरस्वती देवी की पूजा-आराधना की जाती है। ब्रह्मपुराण
के अनुसार कार्तिक अमावस्या की इस अंधेरी रात्रि अर्थात अर्धरात्रि में महालक्ष्मी
स्वयं भूलोक में आती हैं और प्रत्येक सद्गृहस्थ के घर में विचरण करती हैं। जो घर
हर प्रकार से स्वच्छ, शुद्ध और सुंदर तरीके से
सुसज्जित और प्रकाशयुक्त होता है वहां अंश रूप में ठहर जाती हैं और गंदे स्थानों
की तरफ देखती भी नहीं |
त्योहारों
का जो वातावरण धनतेरस से प्रारम्भ होता है,वह इस दिन पूरे चरम पर
आता है। यह पर्व अलग-अलग नाम और विधानों से पूरी दुनिया में मनाया जाता है। इसका
एक कारण यह भी कि इसी दिन अनेक विजयश्री युक्त कार्य हुए हैं।
बहुत से शुभ कार्यों का प्रारम्भ भी इसी दिन से
माना गया है।
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इसी दिन उज्जैन के सम्राट विक्रमादित्य का
राजतिलक हुआ था। विक्रम संवत का आरंभ भी इसी दिन से माना जाता है। यानी यह नए वर्ष
का प्रथम दिन भी है। इसी दिन व्यापारी अपने बही-खाते बदलते हैं तथा लाभ-हानि का ब्यौरा तैयार करते हैं।
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हर प्रांत या क्षेत्र में दीवाली मनाने के कारण
एवं तरीके अलग हैं पर सभी जगह कई पीढ़ियों से यह त्योहार चला आ रहा है। लोगों में
दीवाली की बहुत उमंग होती है। लोग अपने घरों का कोना-कोना साफ करते हैं,
नये कपड़े पहनते हैं।
मिठाइयों के उपहार एक दूसरे को बांटते हैं,एक दूसरे से मिलते
हैं।
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घर-घर में सुन्दर रंगोली बनाई जाती है,
दिये जलाए जाते हैं और
आतिशबाजी की जाती है। बड़े छोटे सभी इस त्योहार में भाग लेते हैं। यह पर्व सामूहिक
व व्यक्तिगत दोनों तरह से मनाए जाने वाला ऐसा विशिष्ट पर्व है जो धार्मिक,सांस्कृतिक व सामाजिक
विशिष्टता रखता है। अंधकार पर प्रकाश की विजय का यह पर्व समाज में उल्लास,
भाईचारे व प्रेम का संदेश
फैलाता है।
इतना ही नही
दीपावली का तो हमारे प्रकृति के साथ भी अनोखा मेल है. दीवाली में लोग अपने- अपने द्वार पर “तोरण “
लगाते हैं जो कि फूल.आम की पत्तियों , कमल और केले की पत्तियों से बना होता है.दीपावली में जो मुख्या
सामग्रियां इस्तेमाल की जाती रहीं हैं उनमे से कुछ हैं :-
- गेंदे का फूल (मेरीगोल्ड
फ्लावर) – भारत में लगभग हर त्यौहार में गेंदे का फूल अलग – अलग तरीके से उपयोग में
लाया जाता है. जानते हैं इसके वैज्ञानिक फायदों को .
o गेंदे का फूल मछर एवं कीड़े- मकोड़ों को दूर रखता है .
o इस फूल की खुशबू से दीमागी थकान एवं बेचैनी की समस्या दूर होती है.
o जहाँ भी आप इन फूलो को रखेंगे, वहां मकड़ी और मखियाँ नही पहुँच पाती .
- आम के पत्ते (मंगो लीव्स)
– आम की पतियाँ सदैव ही भारत वर्ष के हर घर में पूजनीय होते हैं. तोरण से लेकर
पूजा के कलसी तक आम की पतियाँ और छोटी टहनियां उपयोग में लायी जाती हैं.
o
आम के हरे पत्ते कार्बन डाइऑक्साइड को सोखने में और ऑक्सीजन का संचार करने में
मदद करती हैं .
o हरे रंग के कारन ये लोगों की आँखों एवं मस्तिष्क पैर अच्छा प्रभाव डालती हैं.
o आम की पतियाँ छोटे- मोटे कीड़े – मकोड़ों को घर से दूर रखती हैं.
o आम की पतियों में भारी मात्रा में एंटी-बैक्टीरियल और एंटी – सेप्टिक गुण पाए जाते हैं.
- मिट्टी के दीप घी की ज्योत – दीवाली की परम्परा के
अनुसार मिटटी के दीप जलाये जाते हैं जिनमे घी की ज्योत जलाई जाती हैं जो लोगों में
उत्साह और नई उर्जा का संचार करती है.
o मिटटी के दिए अनश्वर होते हैं (जिनका नाश नही होता), इनमे उर्जा और शक्ति का
प्रमाण होता है.
o मिटटी के दीप नकारात्मकता
को दूर करते हैं. जिससे बुरे लोग और बुरी सोच दोनों ही दूर रहते हैं.
o
घी की ज्योत सबसे बेहतरीन होती है, घी जलने के बाद भारी
मात्रा में ऑक्सीजन उत्सर्जन करती है जिससे वातावरण शुद्ध होता है. (Ghee is one of the best thing use
for lighting earthen lamps; after getting burnt, ghee releases lots of oxygen
which purifies the surroundings).
इस तरह से हम सब समझ सकते हैं की भारत वर्ष में मनाए जाने वाले पर्व और त्यौहार न सिर्फ लोगों में उत्साह , उमंग एवं उर्जा का संचार करते हैं बल्कि प्रकृति को भी नमन कर उसका अभिवादन करते हैं.
भारत वर्ष के दूसरे त्योहारों से जूडी बातें अगले भाग में ....
अर्पणा शर्मा