वक़्त जितनी तेज़ी से बदलता
है उतनी ही तेज़ी से उसके साथ चलने वाले लोग भी भागे चले जाते हैं.. पता ही नही
चलता कि कल जिनसे हाथ मिलाया था उनसे ही गले मिलेंगे कभी यूँ इस कदर. बस फर्क इतना
होगा की कल हमारे साथ की, हमारे सफ़र की शुरुआत हुयी थी और आज हमारे सफ़र में उनका
रास्ता ही ख़त्म होने को आ गया. सपना- सा लगता है जब कभी रुक कर, कुछ पल के लिए थम
कर उन बीते लम्हों को देखती हूँ. हाँ, जैसे कल की ही तो बात है २० नवम्बर,२०१५ को एक इंटरव्यू के सिलसिले में आर.सी.पी
(रिलायंस कॉर्पोरेट आईटी पार्क) में कदम रखा था मैंने और वहां उस अंजान सी जगह में
भी मुझे कोई अपना मिल गया, एक ऐसा अपना जिसने पहले दिन ही मुझे मेरी मंजिल की तरफ बढ़ने
का रास्ता दिखाया... “प्रीती परब“ और तब से ही अपनी दोस्ती हो गयी. सफ़र की शुरुआत हुई
और पहला दरवाज़ा जो खुला तो कुछ कदम और हमारे साथ मिल गये ... “ शलाका पेद्नेकर ” ,
“नीता राज” और “स्नेहा चौहान”. इन हाथों ने जिस प्यार से हमारे हाथ को थामा उस सफ़र
में उसका शायद ही मैं कोई डेफिनिशन दे पाऊं. एक परिवार मिला मुझे. गये १ साल में
हमारे रिश्ते और भी गहरे होते चले गये, हर जरुरत में, ख़ुशी में, फेस्टिवल में या
फिर जब मन उदास हो जाये ये चेहरे साथ नज़र आये. हाँ जैसे की अक्सर होता है, कोई दिल
के ज्यादा करीब होता है तो कुछ लोगो से रिश्ते एक हद तक रहते हैं.. यहाँ भी कुछ
ऐसा ही है... बीतते वक़्त के साथ और भी कई लोग इस सफ़र में साथ जुड़ गये और कुछ लोगो
की राहें अलग भी हो गई. किस-किस का नाम लूं “हर्षदा”, “योगेश”, “सचिन भोसले“, “ मिलाप
” , “साईं” , “भूषण” , “किशोर”, “कमलाकांत”, “मुकुंद”, “सजल” ये नाम भी हमारे सफर के
सागिर्द हैं और भी कई नाम हैं, सबको लिखना संभव नही है..
आज ३० नवम्बर,२०१६ को भी जब
मैं बैठकर ये सबकुछ यहाँ लिख रही हूँ तो हममे से ही कोई उन बीते लम्हों को बड़े ही
नाज़ुक हाथों से उलट-पलट रहा होगा या फिर होगी. कहीं न कहीं उन बीते लम्हों की एक
एक याद को सहेजने में व्यस्त. उसके लिए ये साथ भरा सफ़र, जिनमे प्यार भी है, अपनापन
भी और कुछ गिले –सिकवे भी , ख़त्म होने को आ गया. १-२ दिन बाद हमारा ये काफिला तो
आगे बढेगा लेकिन वो शक्श हमारे जत्थे का हिस्सा नही होगा. सब कुछ वहां वैसे ही नज़र
आएगा बस एक खालीपन सा उसमे शामिल हो जायेगा ....
“ वही पुराने किस्से होंगे, होंगी वही कहानियां
बस सिमटा होगा कोई शक्श मन ही मन
और यादों में भी होंगी कई राबनियाँ ...”
“ स्नेहा चौहान “ हमारे सफ़र
से तो अलग होने जा रही हैं लेकिन जब भी इस सफ़र की बात होगी वो सबकी बातों में
होगी. कल को सब उनको टाटा-बाय-बाय तो बोल देंगे लेकिन सिर्फ ऑफिशियली , दोस्ती कभी
ख़त्म नही होती और न ही दोस्तों से जुडी बातें कोई भूल पाता है...
“ स्नेहा “ ये हो सकता है
की कल जब तुम्हे बाय बोलने को लब खुले तो और कुछ बोल न पाएंगे हम. क्योकि जब एक
बेहतरीन सफ़र से कोई मुसाफिर अलग होकर अपनी राह पकड़ता है तो वो राह और भी ज्यादा सुहाना
होता है... साथ चलने वालों के लब तो खामोश होते हैं लेकिन नज़रें बहुत कुछ कह जाती
हैं जिन्हें न तो बोलना आसान होता है और नहीं सुन पाना. कल को अगर तुम्हे बिदाई
देते हुए हम खामोश हो जाएँ तो समझ लेना की हमारे दिल की दुआएं तुम्हारे साथ हैं...
अपना ये सफ़र ख़त्म हुआ है.. राहें अभी भी बाकी हैं.... जब भी दिल से आवाज़ दोगी भले
ही हमारी आवाज़ तुम तक न पहुँच पाए, लेकिन साथ हमेशा रहेगा तुम्हारे नये सफ़र में
भी...
सारे जज्बातों को बताना
पॉसिबल नही है इसलिए बस इतना ही कहूँगी :---
“ कहूँ तुम्हें तो क्या कहूँ ..
कुछ समझ में आता ही नहीं ..
जब भी मिलती हैं तुमसे नज़रे
दिल खुद से पूछता है..
तुमसे कोई रिश्ता तो नही ??
ना जाने क्यूँ ! आ जाती है ..
होठों पे मुस्कराहट...
जब भी देखती हूँ तुम्हे ...
वैसे तो कोई खास रिश्ता नही ..
फिर भी जाने क्यूँ चाहते है तुम्हें..
ज्यादा मैं क्या बताऊँ ??
वैसे तो बहुत कुछ है बताने को..
लेकिन शब्द ही मिलते नहीं..
सुना है “मंजिले “ जुदा होती हैं..
राहें
तो वहीँ पुराणी रह जाती हैं...
चाहूँगी हमेशा कि तुम यूँ ही ,
मुस्कुराते रहना ..
हँसते हुए तुम्हे देखने की चाहत है ...
ये “चाहत” कुछ ज्यादा तो नहीं !!! ”
Wish you a very happy
journey ahead SNEHA …. May God bless you ever…