आज मैं भारत के दो अनमोल रत्न हिन्दू- मुस्लिम के बारे में कुछ कहना
चाहती हूँ . वैसे तो जहाँ भी देखिये ये ही सुनने को मिलता है हिन्दू और मुस्लिम को
एक होने की ज़रूरत है , जब तक हिन्दू-मुस्लिम एक नही होंगे देश सुरक्षित नही होगा,
हमारा देश विकसित नही हो पायेगा . लेकिन मैं मानती हूँ की हिन्दू-मुस्लिम बन के एक होने की जरुरत ही नही है... हिंदुस्तान एक गुलिस्तां हैं जहाँ तरह तरह के, हर तरह
के फूल हैं . हर फूल की अपनी खाशियत है, अपनी खुशबू है अपने रंग हैं जिनसे ये
गुलिस्तां महकता है. जबतक हम सारे फूलों को रंग, खुशबू, और खाशियत के आधार पर अलग
अलग रखने की कोशिश करते रहेंगे तबतक गुलिस्तान से निकलने वाली मनमोहक खुशबू फिजाओं
में एक साथ महक नही पाएंगी...
“ ना
हिन्दू चाहिए न मुस्लमान चाहिए , जिसके दिल में बसा हो “जन कल्याण” वो इन्सान चाहिए...
जो इंसानों
को बाट दे , न वो मनुस्मृति चाहिए न कुरान चाहिए...
मिटा दे
अपने बीच का जो सब भेद-भाव , बस वही वेद औ’ पुराण चाहिये...
न सरहद
पर लकीरें न भारत न पाकिस्तान चाहिए...
जिसमें
नज़र आती थी अपनी शेर-सी तस्वीर ,
आज फिर
वही ७० साल पुराना अपना हिंदुस्तान चाहिए....”
समस्त हिन्दुस्तानीयो के लिए कुछ पंक्तियाँ कहती हूँ , आप अपना मंतव्य “कमेन्ट” कर के अवश्य
बताये :-
तुम भी पियो, हम भी पियें,
रब की मेहरबानी...
प्यार के कटोरे में गंगा का
पानी...
प्यार के कटोरे में गंगा का
पानी...
तुमने भी सवांरी है, हमने भी
सवांरी है.
ये ज़मीन तुमारी है, ये ज़मीन
हमारी है..
होलिओं के रंगों-सी, ईद की
सेवैओं-सी
मंदिरों के फूलों-सी, सुबहों की
अज़ानों-सी
इस ज़मीन पर लिखनी है प्यार की
कहानी
प्यार के कटोरे में गंगा का
पानी...
धर्म जो तुम्हारा है, धर्म जो
हमारा है
धर्म सबका प्यारा है, बस भ्रम ने
मारा है
धर्म पर झगरते हैं, धर्म पर जो
लड़ते हैं
अपनी इस बुराई से, अपनी इस लड़ाई
से
शर्म से न हो जाये धर्म पानी-पानी
प्यार के कटोरे में गंगा का
पानी...
शर्म से न हो जाये धर्म पानी-पानी
प्यार के कटोरे में गंगा का
पानी...
कश्मीर वाले हो, दिल्ली के
उजियाले हो,
यू.पी के हो मतवाले या बिहार के
पाले
गीत गाते गुजरती सब बन के रहें
साथी
कोई धर्म वाले हो, गोर हो या
काले हों
जात हम सब के ज़मीन की है
हिन्दुस्तानी
प्यार के कटोरे में गंगा का
पानी...
आफ़ताब किसका है? माहताब किसका
है?
माहताब सबका है , आफ़ताब सबका है..
ये हवायें किसकी हैं? ये घटाये
किसकी हैं?
ये घटाये सबकी है, ये हवाएं सबकी
है
किस तरह से बाटेंगे ये रब की
मेहरबानी ?
प्यार के कटोरे में गंगा का
पानी...
किस तरह से बाटेंगे ये रब की
मेहरबानी ?
प्यार के कटोरे में गंगा का
पानी...
तुम भी पियो, हम भी पियें,
रब की मेहरबानी...
प्यार के कटोरे में गंगा का
पानी...
प्यार के कटोरे में गंगा का
पानी...
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