बड़े ही ठन्डे लहज़े में
अपने सकुचाये पैरों से अपनी सुराही सी गर्दन को अपने सीने तक झुकाए,अपनी नज़रों को ज़मीन में गड़ाए वो धीमे-धीमे अपने आँगन की दहलीज़ को पार कर के तुलसी के पिंड के
सामने चबूतरे पर अपनी पीठ को ओट से टिका कर बैठ गयी. उसने हौले से अपनी आँखों को
उठाया और अपने बदन की झुर्रियों को देख कर
एक फीकी मुस्कान के साथ उसने अपने आँगन की चार दीवारी को देखा और अचानक ही फफक-फफक
कर रों पड़ी. उसके करुन-रुदन की वेदना से मानो दीवारों के रूह काँप उठे थे. आँगन की
दीवारे कहीं न कहीं सिहर उठी और वहाँ की ज़मीन, जहाँ धुल में सने हुए उसके मैले पैर
पड़े थे, आँसुओं की बरबस गिरती बूंदों से भीग कर खुद को मलीन महसूस कर ग्लानी भाव
से उसके तलवों में अपना चेहरा छुपाने लगी.
उसके रुदन-वेदना में
इतनी तीव्रता थी कि वहाँ का जर्रा-जर्रा भावुक हो उठा, हवाओं के रुख में भी अजीब
सी स्थिरता आ गयी थी और आसमां तो मानो लज्जा के कारण नीचे ही झुका आ रहा था. घंटों
पश्चात भी वह स्थिर मांस-पिंड की भांति वही बैठी सुबक रही थी. आँखों से आँसू गिरने
बंद हो चुके थे, कुछ बुँदे अभी भी गेशुओं से ढलकने को थे और कुछ पलकों पर सूख चुके
थे. उसके मलिन मुखाभास से ऐसा लग रहा था जैसे वह किसी स्वप्न में लीन हो कर अचेत
हो चुकी थी. लेकिन उसके चेहरे के हाव-भाव निरंतर बदल रहे थे.
उसके आँखों के सामने से
पुरानी यादों का कारवां गुजरने लगा था. उसका छोटा सा-परिवार, उसका बचपन उसका यौवन,
उसका लड़की से एक पत्नी और एक पत्नी से माँ बनने तक का सफ़र, जैसे कोई मीठा स्वप्न
आँखों में उतर आया हो. उसकी आँखों में एक चमक सी उभर आई, जैसे किसी बूझते दिए में
किसी ने तेल डाल दिया हो... उसके होठ हिले और हौले से उसकी लरखराती हुयी जुबान से
एक धीमी सी आवाज़ आई :: मेरा लाल , मेरा बेटा .. और वह पुनः शांत हो गयी. उसके हाव-भाव
बदल गये थे, उसके झुर्रीदार चेहरे पर वो मीठी मुस्कान और शरीर में नई उर्जा की लहर
दिखाई देने लगी थी. अपने बच्चे का ध्यान आते ही वो वृद्धा जैसे नवयौवना बन गयी थी.
वह बड़ी ही तेज़ी से उठी और अपने आँगन के दीवारों को निहारने लगी, उसके एक-एक कोने
को इतनी ममता भरी और कौतुक नज़रों से देख रही थी जैसे कोई माँ अपने बच्चे को पहली
नज़र में निहार रही हो. उसके हरेक अंग को उसकी मुस्कान को उसके चेहरे को जैसे आँखों
से अपने ह्रदय में उतार रही हो.
-- क्रमशः