आज २ साल ३महिने और ३दिन हो गये मुम्बई की गलियों में लेकिन बदलीं हैं तो सिर्फ तारीख़, मुम्बई आज भी बिल्कुल वैसी ही है जैसी पहली नज़र में नजर आई थी। वहीं ऊंची ऊंची ईमारत रंगीन रौशनी में नहाती हुई। बेतहाशा भागती हुई भीड़। चारों और गाड़ियों की आवाजाही पर आज इस भागमभाग में भी इक अजीब सी खामोशी महसूस हो रही है। मन बिल्कुल शांत और इस शोर शराबे में भी एकाग्र हो आज की इस शमां को ५ अप्रैल २०१५ की शाम से मिलाने की कोशिश कर रहा है। जब मैंने पहली बार मुम्बई की धरती पर अपने कदम रखे थे। और आज अपने साथ अपनी आंखों में कुछ नये सपने लेकर मुम्बई की गलियों के कुछ खुबसूरत फंसाने अपने दिल में बसा कर इस मायानगरी को अलविदा कहने का वक्त आ गया है।
आज जब कुछ ही घंटों में मुम्बई से अपनी रवानगी होने वाली है तो दिल उन तमाम लोगों को शुक्रिया अदा करना चाहता है जिन्होंने अपने साथ से मेरे जीवन में रंग भरे हैं।
कई तरह के यादों का काफिला नज़रों के सामने आ रही है चाहे वो आफिस में दोस्तों के साथ मस्ती हो या फिर यूंही कभी भी एक दूसरे को छेड़ देना, कभी बेवक्त आइस क्रीम खाना या अपनी ही मस्ती में वर्क फ्लोर पर खिलखिला कर हंस पड़ना।
मुम्बई ने क्या दिया या यहां मैंने क्या खोया इसका कोई जवाब नही है मेरे पास लेकिन हां मुम्बई ने कुछ ऐसे लोगों से मिलाया जिन्हें भुलाना नामुमकिन है। जब भी किसी अपने के साथ की जरूरत हुई तो इस अजनबी शहर में उन्हें अपने साथ पाया।
अमोल जोशी, प्रिती परब, शलाका पेडनेकर, नीता राज, स्नेहा चौहान, कमलाकांत बेहेरा, सजल मेहता, हर्षदा तुम लोगों को शुक्रिया बोल कर मैं हमारी दोस्ती को एहसान का नाम नहीं दूंगी । तुम लोगों ने जो कुछ भी किया वो तो तुम्हे करना ही चाहिए था आखिर अपनी दोस्ती का हक और फर्ज तो निभाना ही था। 😉
अमोल एंड प्रिती सौरी आते टाईम मिल नहीं पाई लेकिन गलती तुम्हारी ही थी 😜
बस अब बहुत हुआ लिखना, सब अपना ख्याल रखना । ये कुछ लाईन आप सब के लिए ....
" छूट रही हैं राहें अपनी,
साथ अपना छूटे ना ,
बेशक कभी याद ना करना
मगर याद दिलों से भूले ना ।
साथ अपना कुछ दिनों का ही था
लेकिन प्यार बेमिसाल था .."
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