हिंदी भाषा को सीखने और
उसे सही तरीके से इस्तेमाल करने के लिए कुछ शब्द प्रयोग और उनसे जुड़े तथ्य को
जानना आवश्यक है. अतः हिंदी भाषा अध्ययन के पहले अध्याय में हम जानेंगे शब्द और
उनके प्रयोग के बारे में.
समाज में या सोसाइटी में विभिन्न
भाषाओँ का प्रयोग (यूज़) होता है, जिससे कि वहाँ के रहने वाले लोग अपने विचारों का
आदान-प्रदान एवं अभिव्यक्ति करते हैं. प्रत्येक समाज की कुछ मान्याताएँ होती हैं
जिनका पालन भाषा- व्यव्हार में भी अनिवार्य है, यथा (जैसे / example) “थन” शब्द का
प्रयोग केवल पशु-मादा के सन्दर्भ में ही होता है, जबकि “स्तन” शब्द का प्रयोग नारी
के सन्दर्भ में होता है.
जो लोग हिंदी को दूसरी या
अन्य भाषा के रूप में सीखते हैं उन्हें तो विशेष रूप से सतर्क रहने कि जरुरत होती
हैं क्यूंकि विभिन्न भाषाओँ के संपर्क से कभी –कभी सीखी हुई और सीखी जाने वाली
भाषा में समान उच्चारण वाले शब्दों का प्रयोग होता है जिनका अर्थ या केन्द्रीय
अर्थ अलग होता है. यथा -- “शिक्षा” शब्द का प्रयोग हिंदी में “ज्ञान” (Education)
के लिए होता है जबकि कन्नड़ में “दण्ड” (punishment) के लिए.
इसी प्रकार के अनेक शब्द
दो भाषाओँ में भिन्नार्थी रूप में मिल सकते हैं जिन कि अर्थ-भिन्नता के आधार पर
प्रयोग-सन्दर्भ में भी भिन्नता रहना आवश्यक है. हिंदी भाषा में शब्दों को कई
श्रेणियों में विभाजित किया गया है. जैसे –
भय, आशंका, घृणा/जुगुप्सा
, लज्जा/शर्म, आदर के कारण अनेक वस्तुओं /क्रिया-कलाप/व्यवहारों को हम सीधे या
सामान्य शब्दों में प्रकट न कर के संकेतात्मक रूप में या घुमा-फिर कर दूसरे शब्दों
में व्यक्त करते हैं. इस प्रकार का कथन “अव्यक्त कथन/सांकेतिक कथन/तिर्यक् कथन”
(Euphemism) कहलाता है. इस प्रकार के कथन में वर्जित शब्दों ‘टेवू’ के
प्रयोग से बचना पड़ता है. वर्जित शब्द प्रयोगकर्ता/ समाज के स्तर-भेद के अनुसार भिन्न-भिन्न
हो सकते हैं.
किसी शब्द का संदर्भो चितसही
अर्थ जाने बिना या जल्दी- जल्दी में गलत सन्दर्भ में उस शब्द का प्रयोग करना शब्द-भ्रान्ति
(Catachresis) कहलाता है. यथा- किसी जीवित व्यक्ति को “श्रधा” के स्थान पर “श्रधांजलि”
अर्पित करना.
कभी-कभी हमलोग आम बोल-चाल
कि भाषा में कुछ भरी भरकम शब्दों का प्रयोग कर जाते हैं. जैसे- बुखार के लिए ज्वर,
गर्मी के लिए ऊष्मा इत्यादि .. ऐसे शब्दों को पंडिताऊ शब्द (Pedantic) कहते
हैं. इस प्रवृत्ति से बचने का प्रयाश करना चाहिए. कुछेक जगहों पर इन शब्दों का
प्रयोग पंडिताऊ नही कहलाता. जैसे – उपभोक्ता, आपूर्ति आदि.
कभी-कभी सुनने में हुई
गलती या श्रुत/वर्तनी सैम शब्दों के प्रयोग के समय शब्द-भ्रान्ति (Malapropism)
हो जाती है, जैसे- आदि-आदी, महरूम-मरहूम, शोक-शौक, सदा-साधा इत्यादि. कभी-कभी शब्द
के मूल को समझे बिना प्रयोक्ता अटकलबाजी से शब्द-भ्रान्ति कि भूल (Hawless)
कर बैठता है. यथा- लाला जो हमेशा ला-ला करता है, लाभकर- जो स्वयं का लाभ करता है आदि.
इस प्रकार कि भूलों का मुख्या कारन लोक-व्युत्पति (Folk Etymology) से अधिक
प्रभावित होना है.
क्रमशः ( To be continue ...)
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