Tuesday, 22 August 2017

उम्मीद - पार्ट-3


मेरी बातों को सुनने के बाद उसने अपने होठो पर औपचारिकता की एक फीकी सी मुस्कान लाने की
 कोशिश करते हुए उत्तर दिया:
    बरसात के बाद अक्सर मौसम सुहाना हो ही जाता है..." 

और उसके आँखों से आंसुओं की एक पतलीधार उसके गालों पर ढलक गयी.... और मैं एक मूक दर्शक बन किसी अबोध बच्चे की तरह उसके चेहरे को टुकुर- टुकुर देखती रही , शायद उसके चेहरे से उसके मन को समझने की कोशिश कर रही थी. मयूरी अभी भी खुद को सँभालने की कोशिश कर रही थी उसका सुबुकता हुआ चेहरा बिलकुल लाल हो गया था, आँखों को देख के एक डर सा लग रहा था बिलकुल रक्त-लाल जैसे किसी ने बहती हुई नदी में खुन की एक धार मिला दी हो.
बालों की कुछ लटें आंसूयों में भींगकर चेहरे से लिपट गयी थी, उसके काले बाल चेहरे पर किसी सर्प की तरह प्रतीत हो रहे थे.

             मैं कुछ भी न बोल पाई और अगर बोलती भी तो क्या ??
आज जिस मयूरी को मैंने अभी अभी देखा है ये बिलकुल अजनबी है मेरे लिए. मैंने जिस मयूरी को देखा था वो तो कोई और ही थी. चंचल नैन-नक्श और खुबसूरत से चेहरे पर मुस्कान सजाये हुए परी से ही मिली थी मैं.

मयूरी ने खुद को शांत करते हुए बड़े ही गंभीर शब्दों में मुझसे कहा “ अब तुमसे क्या बताऊँ मैं ? कितना बताऊँ और क्या छुपाऊं ? ज़िन्दगी को जितना ही खुशनुमा बनाने की कोशिश करती हूँ, ये उतने ही कांटे मेरे रास्ते पर बिखेर के रख देती है. लेकिन आज मेरा जी चाहता है की तुमसे अपने दिल की हर बात कह दूं, अपने दिल की हर गाँठ को खोलकर रख देने की ईक्षा होती है.

मैंने बिना कुछ बोले ही अपने हाथ को उसकी हाथेलियो पर रख दिया. उसका शरीर गर्म था जैसे किसी ने चूल्हे को बुझा दिया हो लेकिन आग की गर्मी अब तक हो उसमे.

मयूरी ने धीमे-स्वर में बोलना शुरू किया :: (आगे की कहानी मयूरी की जुबानी)

आज से कुछ ५ साल पहले मैं पुणे में रहती थी एक कंपनी में बी.पी.ओ. में जॉब करती थी वहीँ मुझे स्वप्नील मिले थे. वो भी वहां मेरी तरह ही काम करते थे. एक शिफ्ट और बैच में होने के कारण हमारे बीच बातें अक्सर हो जाती थी. सभी टीम-मेट एक साथ ब्रेक लेते थे. ऐसा लगता था मनो एक छोटा सा परिवार हो हमारा .धीरे-धीरे टाइम के साथ हम दोनों साथ में ब्रेकफास्ट और लंच करने लगे और बाकियों का साथ कब छुटता गया पता ही नही चला. मेरे दोस्त धीरे-धीरे सब मुझसे दूर हो गये. लेकिन स्वप्नील और मैं पास आते जा रहे थे, लगभग २ साल बीत जाने के बाद हमने फैसला किया कि आगे भी हम साथ साथ ही रहेंगे. उम्मीद थी मुझे कि स्वप्नील का साथ मेरी ज़िन्दगी में नये रंग भर देगा, मेरी ज़िन्दगी को एक नया मुकाम देगा. 

ये बात मैंने अपने घर में अपनी माँ को बताई और माँ ने बाबा को. ये फैसला उन्हें अच्छा नही लगा फिर भी मेरी ज़िद के कारण क्यूंकि मैं उनकी एकलौती बेटी थी, वो स्वप्नील से मिलने को मान गये. जब स्वप्नील मेरे घर आया तो उसने बताया उसके परिवार में कोई नही है. वो अकेला ही है. पहले तो मेरे बाबा ने इंकार कर दिया हमारे रिश्ते से लेकिन हमने हार नही मानी , हमने उन्हें मनाने की पूरी कोशिश की और फिर लगभग १ साल बाद बाबा इस शर्त पर शादी के लिए तैयार हुए की शादी के बाद भी स्वप्नील और मैं उनके पास ही रहेंगे. स्वप्नील ने भी हाँ कर दी, फिर एक हफ्ते में ही हमारी सगाई हो गयी और ६ महीने बाद शादी. मैंने जॉब छोड़ दी क्यूंकि स्वप्नील को लगता था कि मुझे जॉब करने की जरुरत नही है, मुझे घर और माँ बाबा को देखना चाहिए. पहले तो मुझे ये थोडा अटपटा लगा लेकिन फिर लगा हो सकता है स्वप्नील माँ बाबा को बहुत प्यार करते हैं इसलिए चाहते हैं कि मैं उनका ख्याल रखूँ.

 ऐसे ही ८ महीने और बीत गये, तब एक दिन अचानक स्वप्नील ने कहा कि उनका ट्रान्सफर मुंबई में हो गया है और अगले ही दिन उन्हें मुंबई जाना होगा. नई जगह है तो परेशानी न हो इसलिए वो अकेले ही यहाँ आ गये. ३ महीने के बाद मैं जब यहाँ आई तो मुझे स्वप्नील कुछ अलग लगे. पूछने पर कहा कि काम का प्रेशर है. फिर धीरे-धीरे हमारी लाइफ पहले की तरह चलने लगी थी. अब जब माँ-बाबा और खुद मैं भी चाहती हूँ कि हम अपनी फॅमिली प्लान करें तो स्वप्नील किसी न किसी बहाने से टाल जाते हैं. हमे लगा हो सकता है ये पहले फ्यूचर सिक्योर करना चाहते हैं इसलिए और रेस्पोंसिबिलिटी नही लेना चाहते. लेकिन ...

लेकिन ... अभी कुछ हफ्ते पहले ही एक दिन मैंने स्वप्नील को न्यू पनवेल स्टेशन में किसी औरत और एक बच्चे के साथ देखा था, पूछने पर इसने बताया कि वो इनके किसी दोस्त की वाइफ और बेटा था. फिर सबकुछ अच्छा चल रहा था. अभी स्वप्नील ने कुछ महीने पहले ही न्यू स्टार्टअप के लिए बाबा से बात की थी, इसका आईडिया बहुत अच्छा है और स्कोप भी अच्छा है. इसलिए हमने बैंक से २० लाख का लोन लिया है और सिक्यूरिटी के लिए मेरा पुना का घर रखा. अभी परसों ही लोन का सारा पैसा स्वप्नील को मिला और रात में ही उसने मुझे एक सरप्राइज गिफ्ट भी दिया. मैंने गिफ्ट खोला तो उसमे ....

(बोलते-बोलते मयूरी की आवाज़ में दर्द उतर आया उसकी सुखी आँखों में फिर से आसूयों की धार बहने लगी ... मुझे किसी अनहोनी के होने की आशंका हुई, मैंने उसका हाथ जोर से अपने हथेलियों के बीच दबा लिया. मयूरी ने फिर से बोलना शुरु किया:)

उसमे डाइवोर्स के पेपर थे. मैं कुछ बोल पाती या समझ पाती उससे पहले ही स्वप्नील ने कहा कि अब कुछ नही हो सकता, क्यूंकि कानून की नज़र में तो हमारी शादी स्वप्नील की दूसरी शादी है और वो भी बिना उनके तलाक के. उस दिन मैंने जिसे देखा था वो स्वप्नील की वाइफ थी और उसका ७ साल का बेटा. कहता है वो तो अपने बच्चे के अच्छे भविष्य के लिए पुणे जॉब करने गया था. मैं तो बस उसके लिए एक आप्शन थी पैसे बनाने का. अब वो अपनी वाइफ और बेटे के साथ आज शाम को ही कहीं और जा रहे हैं. क्या करूँ समझ में नही आ रहा ... किससे बात करूं ? कैसे रोकूँ स्वप्नील को ? माँ बाबा को क्या कहूं? क्या बताऊँ उन्हें कैसे समझायूँ क्या हुआ ? कैसे हुआ? क्यों हुआ?? ये सब सुन कर तो वो मर ही जायेंगे ... उनका तो कोई और उम्मीद भी नही रहा ...

इतना कहते कहते जैसे वो अन्दर से टूट गयी थी और उसका दिल रो पड़ा ... आन्सुयों का सैलाब उमर आया और उसके रुदन स्वर से मेरे रोयें खड़े हो गये... वो माहौल इतना ग़मगीन था थी कि मेरे आँखों से भी आन्सुयों की लड़ी बह गयी ... मयूरी बहुत बुरी तरह रो रही थी .. समझ पाना मुश्किल था कि ज्यादा गम किस बात का था ? स्वप्नील का उसके लाइफ से जाने का या उसके माँ बाबा के इस तरह छले जाने का...

मैं किसी तरह अपने को बटोर कर उसकी मदद करने की कोशिश करने लगी लेकिन मयूरी को संभाल पाना मेरे बस में न था.. मैंने बड़ी मुश्किल से उसके आई –बाबा को फ़ोन किया लेकिन हकीकत बताने की हिम्मत न हुई. इसलिए सिर्फ यह कहकर उन्हें जल्दी मुंबई आने को कहा की स्वप्नील है नही और मयूरी की तबियत बहुत ख़राब है.

दुसरे दिन मयूरी के माँ –बाबा अहले सुबह मुंबई आ गये. अपनी बेटी की ये अंतर्वेदना सुनकर वो रो पड़े जैसे किसी ने उनसे उनके जीने की उम्मीद ही छीन ली हो. वहां ४ बूढी आँखे थीं जो ये सब देखने सुनने के पहले ही बंद न होने के लिए अपने भगवान को कोस रहीं थी. २ जवान आँखे थीं जो अचानक पत्थर की हो गयी थीं, उसके अन्दर की चंचलता वो मादकता जो किसी को एक नज़र में ही अपना कायल कर देती थी अब सुनी-सियाह हो गयी थी , उनमे न कोई रंग था नहीं कोई राग.
तीनों के करूँ रुदन से पूरा कमरा चीख पड़ा था जैसे किसी ने उनका दिल नोचकर निकल लिया हो. मुझसे ये सब सहन नही हो रहा था लेकिन मैं कुछ भी करने में असहाय थी. मेरे दिमाग में आया की स्वप्नील को पुलिस में ही दे दें  .. लेकिन अफ़सोस, मयूरी ने बताया न तो स्वप्नील का नाम सही था और न ही कोई डॉक्यूमेंट. सब बस एक छालाबा था. सब कुछ .... घर पर पुलिस की एक टुकड़ी आ कर छान-बीन कर रही थी... स्वप्नील का स्केच बनाने की कोशिश कर रही थी लेकिन वो तीनों ही कुछ बता पाने में असमर्थ थे... उनका दुःख उनके यादास्त पर भारी पर रहा था... दिन अपना सफ़र काटते हुए सुबह से संध्या की ओर अग्रसर थी.. घर में अभी भी पुलिस वालों की चहलकदमी थी ....

मयूरी के इस दुःख को उसके बाबा झेल न सके और रात के ढलने के पहले ही उनके साँसों का दीपक हमेशा के लिए बुझ गया, बेटी के इस पहाड़ जैसे जीवन पर छलाबे का ये गम और पति की अकस्मात मृत्यु ने मयूरी की माँ को अन्दर से तोड़ दिया था वो खामोश हो गयी सदा सदा के लिए. अब वहाँ २ मृत शरीर और एक अध-जीवित मयूरी थी. जो न तो कुछ बोल रही थी न कुछ सुन रही थी. पुलिस वालों ने ही डॉक्टर को बुला लिया था ... और जवाब में डॉक्टर ने बस इतना ही कहा :: “सॉरी, शी इस नो मोर”.

देखते देखते वहां मैंने ३ लोगो को बिन मौत के मरते हुए देखा था ... एक हस्ता-खेलता परिवार मर के उजड़ चूका था.. जिस इन्सान को मैंने अपने पहली मुलाकात में मयूरी का सच्चा हमसफ़र समझा था .. वो बस एक कल्पना मात्र लग रहा था... ये घर जहाँ कल तक मैं एक रेंटर थी अब पुलिस के अंडर था .... दिल और दिमाग ने काम करना बंद कर दिया था और धड़कने शायद अभी भी इस सच को सपना मानने का असफल प्रयाश कर रही थी. कल शाम ऑफिस से आने के बाद से आज शाम तक के २६ घंटों में मैंने जाने ज़िन्दगी के कितने खेल , कितने रंग और कैसे कैसे रिवाज़ देख लिए थे....

मुझे भी अपना नया ठिकाना ढूँढने के लिए हफ्ते का समय दिया गया लेकिन अब उस जगह मेरे लिए तो १ मिनट भी रुकना मुमकिन न था... सो, अपना बोडिया बिस्तर बांधकर मैं उस गली –उस मोहल्ले से दूर एक छोटे से रूम में रहने लगी... लेकिन वहां की वो यादें... अब तक दिल और दिमाग को झकझोर के रख देती हैं... क्या कहूँ और बस इतना ही ::

           “लगता है जब भी ऐ ज़िन्दगी कि
             तेरा रंग खुशनुमा निराला है...
             यकीं कर तू मेरा ,
           तूने मुझे हर बार गलत कर डाला है...
               वैसे तो पायीं हैं
             मैंने कई उमीदें तुमसे
              लेकिन उन उम्मीदों पर
            पानी भी तुमने ही डाला है..
             लेकिन उन उम्मीदों पर
            पानी भी तुमने ही डाला है”           



                            समाप्त