Thursday, 25 May 2017

" प्रेम " - पार्ट -२

नमस्कार / सलाम / आदाब / हाई / हेलो. मेरे सभी दोस्तों का तहेदिल से शुक्रिया जो आप सबने मेरे ब्लॉग को , मेरे पोस्ट को पढ़कर मुझे हमेशा आगे बढ़ने की हिम्मत दी है.. आज तक मैंने जब भी कुछ लिखा आप सबने उसका खुले मन से स्वागत किया. उसके लिए आभार .

लेकिन आज जो मैं लिखने जा रही हूँ वो सिर्फ मेरी कलम या हाथ नही लिख रहे, यूँ समझ लीजिये :-

दिल का कतरा कतरा मचल उठा अपना हाल--दिल बयाँ करने को,
लब ने कोशिश हज़ार की, इंकार--इजहार से लेकिन  ...
बगाबत कर उठी निगाहें, लपेट के ज़ज्बातों को ह्या के लाली से  ...
कलम भी मजबूर हो गयी  कागज़ के टुकड़ों पर शब्दों को बिखेरने को.. ”

शब्द”- कहतें हैं अपने मन की हर बात को, ज़ज्बात को बताने के लिए शब्दों का होना जरुरी है. ख़ुशी के, गम के, आशाओं के, निराशाओं के, उमीदों के, ना-उमीदों के हर जज़्बात को शब्दों के सहारे की जरुरत पड़ती ही हैं.
लेकिन कुछ बातें ऐसी भी होती हैं जिनका शब्दों में बयाँ होना कठिन है. इसलिए नही की उन्हें समझना मुश्किल है, बल्कि इसलिए क्यूंकि उन्हें शब्दों में ढालना मुश्किल है..

उन्ही ज़ज्बातों में से एक हैप्रेम”, जिसे तो पढ़ा जा सकता है, ही शब्दों में लिखा जा सकता है.

हो जाती हैं जब नज़रें नज़रों से रूबरू,
उल्फत का चिलमन आप ही सुलग उठता है....
निगाहें निगाहों से बातें करती हैं
शब्दों का काफ़िला होठों से रुख्सत हो जाता है...
सपने बुना करते थे कभी जो, मोहब्बत की आयातें पढने को..
उन्ही पलकों का चिलमन आप ही सुलगता-बुझता रहता है...
लाखों अरमान होते हैं दिल के खजाने में, लेकिन...
नज़रों के खेल में... कुछ बयाँ हो जाता है.. कुछ फ़ना हो जाता है..”

उल्फ़त-इश्क-मोहब्बत-प्यार जाने कितने शब्दों से रूबरू थी मै अबतक लेकिन इनकी गहराईयों से मेरे दिल की गुफत-गु अब हुई. प्रेम की भाषा आँखों से ही शुरू होती हैं और आँखों से ही बयाँ भी.. प्यार की पहली नज़र का एहसास ऐसा महसूसहोता है जैसे किसी ठंढी हवा के झोंके ने बेचैन मन को आहिस्ते से छू कर उसपर (मन पर) अपना अनदेखा रंग चढ़ा दिया हो.. जैसे किसी अँधेरे गली में एक मद्धिम-सी लॉ के साथ कोई दीप जगमगा उठा हो ... किसी ने सपनो की कोई झिन्नी सी चादर पलकों पर इतने हलके हाथों से ओढाया हो कि अचानक ही दिल और दिमाग दोनों की समझ-बूझ पर प्यार का साया पड़ गया हो ... उसके अलावा कुछ नज़र ही नही आता ... हालत कुछ ऐसी होती हैं कि न समझ में आती है न बिना समझे रह पातें हैं..

ऐसी ही एक प्रेम कहानी से मैं आप सबको आज रूबरू कराने जा रही हूँ लेकिन ये सिर्फ कहानी नही है ... जैसा कि मैंने पहले ही कहा :

          “लब ने कोशिश हज़ार की, इंकार--इजहार से लेकिन  ...
         बगाबत कर उठी निगाहें, लपेट के ज़ज्बातों को ह्या के लाली से  ...

तो दोस्तों कहानी की तरफ बढ़ने से पहले इस इश्क की दास्ताँ को सुनने और सुनाने से पहले प्यार की गलियों में एक चाय की चुस्की तो बनती है...

वक़्त हो रहा है रात के ११:४१ (11:41 pm), बैकग्राउंड में है राहत फ़तेह अली खान साहेब का गाना धीमी सुरीली आवाज़ में और हाथ में अदरक वाली चाय की प्याली.. खिड़की से आती हुई ठंढी हवा का मदमस्त झोंका और ख्यालों में प्रेम (love) , प्रेम (non other than my sweet hubby) और प्रेम की बातें (love talks).... मूड बन चूका है चाय की चुस्कियों के साथ तो चल पडतें हैं हम और आप प्रेम की गलियों में ...


 मैं तो तैयार हूँ ... आप लोग तैयार हैं या नही ? ( let me know in comment box..)