Saturday, 12 November 2016

अजनबी... जाना –पहचाना सा - II

मन यादों के समुन्दर में यूँ गोते लगाने लगा जैसे कोई मछली मस्ती में नदी  की  लहरों के साथ डूबती और उभरती हो लेकिन वो   तो भींग पा रही हो और ही सुखी बच पायी हो ...
सुबह आसमां में फिजाएँ अपनी रंग बिखेरे, चिड़ियों के चहचहाहट से शमां गूंज उठे उससे पहले ही प्यार के बूंदों से ओत-प्रोत मन अपने प्यार का हाथ थामे लव ट्री के आगोस में पहुँच जाते. उनके प्यार में स्थिरता कितनी थी या उनके प्यार के सैलाब में रूमानियत कितनी थी .. कहना मुश्किल है लेकिन जो भी था अद्भुत था. एक-दुसरे में डूबकर एक - दुसरे को देखती उनकी नज़रें,  प्यार से लबालबाये उनकी आँखे, कभी छूटने पाए ऐसे हाथों में हाथ और बस ऐसी ही हर मुलाकात.
कभी रूठना-मानाना भी होता था तो कभी प्यार से इतराना भी होता था ... कभी डूब जाते थे जो एक दूजे की नज़रों में उनका जोर जोर से लड़ना-झगड़ना भी होता था ... ऐसी ही कई मुलाकातों का , प्यार के इज़हार का, इकरार का और तकरार का चश्मदीद गवाह बना है वो अपना लव ट्री ”.   
चाय कि चुस्कियों के साथ प्याज के पकोड़े, अचानक कभी जैसे पकोड़े में डाली हुई कोई मिर्च का टुकड़ा दातों तले गया हो वैसे ही कुछ खट्ठीमीठी यादें जेहन में आने जाने लगी..
 ये लव ट्री सिर्फ प्यार के पंछियों का ही बसेरा नही है, इस पर तो दोस्ती के भी रंग-बिरंगे अनगिनत फूल खिले हैं. सुबह से शाम तक, शाम से रात तक और रात से सुबह तक .. दोस्तों- यारों का ठिकाना बना है ये.
कभी हँसी-ठिठोली में तो कभी होठो से सटी सिगरेट और मुँह से निकलती उसकी कस के साथ, कभी एक-दूजे पर छींटा-कशी करती नज़रें तो कभी बेपरवाहियों में बेफिक्री से खिलखिलाता मन... दोस्तों के साथ अड्डेबाज़ी के लिए एकदम परफेक्ट ठिकाना अपना लव ट्री ... कितनी बोत्तलें भी खुली यहाँ और कितनी फूटी भी इसी  पेड़ के नीचे, कभी इज़हार--इश्क में कभी गम--गफ़लत में... कई यादों का गुलिस्तां बना है ये लव ट्री ...
 ऐसी ही जाने कितनी बातें कितनी मुलाकातें , हैं जो हमने देखी हैं सुनी हैं और यादों में समेट लीं हैं.. बहुत कुछ बताना है आपको लेकिन यादों से सराबोर ये मन और कुछ अभी लिखने कि इज़ाज़त नही दे रहा .. दिल तो बस इतना ही बोलना चाह रहा है ..

               बाकी अभी हैं कितनी बतियाँ, बैठ गये क्यों फेर के अँखियाँ ,
               नैन मिलेंगे तो दिल धडकेंगे, दिल धडकेंगे तो शोले भड़केंगे..
                                   
तो मिलतें हैं कुछ और यादों के साथ ... मैं, आप, और BUIE के हॉस्टल कैंपस का लव ट्री ... एक और कप चाय कि प्याली के साथ और लता जी के गाने के साथ.. अगली क़िस्त में ..

              “  हम भूल गये रे हर बात मगर तेरा प्यार नही भूले

                क्या क्या हुआ दिल के साथ - मगर तेरा प्यार नही भूले ..                                                     
                                                                                                                     To be continue...

Friday, 11 November 2016

अजनबी... जाना –पहचाना सा - I


                हम भूल गये रे हर बात मगर तेरा प्यार नही भूले,
                क्या क्या हुआ दिल के साथ -२ मगर तेरा प्यार नही भूले
                हम भूल गये रे हर बात मगर तेरा प्यार नही भूले


लता मंगेशकर की ये लाइन्स कानो में जाते ही एक अलग ही दुनिया के रंग और आरजू मन में उभर आते हैं.
ये एहसास कुछ अलग है..क्या है ? मालूम नहीं लेकिन कुछ अलग है शायद सबसे अलग. हो सकता है अलग-अलग लोगो के लिए ये अलग-अलग मायने रखते हों लेकिन अपने लिए तो बस .. जो भी है बस यही है कुछ 
अलग सा- कुछ नया- सा ....
आज भी जब अपनी खिड़की के पास कुर्सी डाल कर चाय की प्याली के साथ प्याज के गरमा-गरम पकोड़े हाथ में लिए हुए जब बैठी और मधिम आवाज़ में बजती हुई लता जी का ये गाना कानो में पड़ा तो ... बस मानों कानो में संगीत का एक मीठा रस भर गया .. धड़कने कहीं मशगुल हो गयीं और नज़रें ... बस कहीं जा टिकीं. हाथों कि उँगलियाँ भी प्याज के पकोड़े को मुँह के सुपुर्द कर के अनायास ही बालों में कहीं सुलझी- उलझी लटों को सुलझाने में मसरूफ हों गयी ..
         जेहन में अगर कोई ख्याल रहा तो बस इतना ...

           ”हम भूल गये रे हर बात मगर तेरा प्यार नही भूले ...”

यादों के झरोखे से कुछ यादें हमारे मन पटल पर किलोले करनी लगी..होठों पर एक दबी-दबी सी मुस्कान और आँखों में 
 अलग – सी चमक आ गयी. बरबस ही याद आ गया अपना “लव-ट्री”, वही जो बी.ऊ.आई.इ (BUIE) के हॉस्टल कैंपस कि शान हुआ करता है. और हम जैसों का टाइम पास, ना-ना उसकी तरफ नज़रे कर के बैठना ही अपना टाइम पास कर देता था.
और याद आये भी क्यों नहीं.. आखिर वो अपना “ लव ट्री “ जो ठहरा.. हर वक़्त कपल्स (couples) की अठखेलियों से घिरा हुआ, लवर्स का फेवरेट अड्डा..जाने कितने दिल जुड़े उस पेड़ के नीचे और न जाने कितनी मोहब्बतें जवान हुईं. उन्ही में से कुछ यादें अचानक ही याद आ गयी ये गाना सुनते ही और अकेली होते हुए भी मन जोर के ठहाकों के साथ हँस पड़ा. और लबों ने ये लाइन्स दोहरा दीं ..
            ”हम भूल गये रे हर बात मगर तेरा प्यार नही भूले ...”


सोचा ये यादें आप सबके साथ भी शेयर करूँ ... शायद आप में से भी कुछ लोग अपनी बीती कहानियों को याद कर लें ..
                                                                To be Continue …