Thursday, 24 May 2018

कहीं गुम-सी हो गयीं


फ़ैल जाते थे यूँ ही
जो होंठों पर बेबाक-सी मुस्कुराहटें
आज वो कहीं गुम-सी हो गयीं

हर दम, हर पल वो भींगे-भींगे
क़दमों की आहटें  
आज वो कहीं गुम-सी हो गयीं

वो दोस्तों की टोलियाँ
आम के बागों में चुहलबाजियाँ
बारिश में भींगता बचपन,
कागज की वो कश्तियाँ
कभी धुल-मिटटी में सनी
कभी झूलों में लटकता बचपन
कभी तितलियों सा-उड़ता,
कभी गोरैया-सा फुदकता बचपन
आज वो कहीं गुम-सी हो गयीं

कभी पखियों-सी किलोलें
कभी बेसबब किलकारियां
किताब के हर पन्ने पर उकेरा हुआ नाम
काँपी के आखिरी पन्नों पर
अपनी चित्रकारियां
सुबह की वो नूर
शाम की वो आफताबियाँ
आज वो कहीं गुम-सी हो गयीं

हर दम, हर पल वो भींगे-भींगे
क़दमों की आहटें  
आज वो कहीं गुम-सी हो गयीं  ...


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