Tuesday, 27 June 2017

आप की याद आती रही रात भर

आप की याद आती रही रात भर
चश्म- -नाम मुस्कुराती रही  रात भर
रात भर दर्द की शमां जलती रही
गम की लौ थर्राती  रही रात भर
बांसुरी की सुरीली सुहानी सदा
याद बन बन के आती रही रात भर
याद के चाँद दिल में उतरते रहे
चांदनी जगमगाती रही रात भर
कोई दीवाना गलियों में फिरता रहा

 कोई आवाज़ आती रही रात भर...  

आज उसे फिर याद किया..

आज ज़रा फ़ुर्सत पायी थी,
आज उसे फिर याद किया..

बंद गली के आखिरी घर को
खोल के फिर आबाद  किया..

खोल के खिड़की चाँद हँसा
 फिर चाँद ने दोनों हाथों से
रंग उड़ाए, फूल खिलाये,
चिड़ियों को आज़ाद किया..

बड़े बड़े गम खड़े हुए थे
 रास्ता रोके राहों में
छोटी छोटी खुशियों से ही
हमने दिल को शाद किया

बात बहुत मामूली सी थी
उलझ गयी तकरारों में
एक ज़रा सी ज़िद ने आखिर
दोनों को बर्बाद किया

दनाओ की बात ना मानी
काम आयी नादानी ही
सुना हवा को, पढ़ा नदी को,

मौसम को उस्ताद किया..

Monday, 26 June 2017

उम्मीद - पार्ट-२

नीले-हरे-बैंगनी रंग के शिफॉन की साड़ी में कुछ हडबडाई सी, हाथों को अपनी साड़ी के पल्लू से ढकने की कोशिश करती हुई सकपकाई सी वो दरवाजे को खोलने के बाद एक किनारे खड़ी हो गयी थी. उससे देखने के बाद मेरी नज़रें उसपर ही टिक गयी थीं . वो चेहरा जो फूलों सा दमकता था, एकदम मलीन हुआ पड़ा था . हिरनी के जैसे चंचल नैना बिलकुल पथरायी हुई  सी महसूस हो रही थी, चेहरा स्याह, आँखों के आस-पास हलके से फैले हुए काजल : जैसे किसी ने आँखों से बहते हुए आँसुयों को पोछा हो और काजल फ़ैल गया हो. गलों पर आँसूयों के धार की लकीरे स्पष्ट तो नही पर परोक्ष थीं. बिखरे हुए बालों को सवारने के लिए या फिर दरवाजे पर अकस्मात दस्तक पड़ने के कारण उन्हें समेट कर पीछे की ओर शायद क्लच किया हुआ था. चेहरा बिलकुल अलग दिख रहा था. 

मुझे सामने देख कर उसने मुस्कुराने की कोशिश की लेकिन उसमे भी शायद दिल और दिमाग में संतुलन न होने के कारण वह असफल रही. मैं अपलक उसे ही देखे जा रही थी, जब मुझे उसके चेहरे के बदलते भावों को देख अपनी गलती का अहसास हुआ तो मैंने बिना कुछ कहे ही अपनी पलकें झुका ली. मैं वहां खड़ी सोच ही रही थी की आगे क्या करूँ?  तभी मयूरी की आवाज़ मेरे कानो में पड़ी:: भीतर आ जाओ, आवाज़ में कोई रस भी ना था और न ही किसी प्रकार का आग्रह या अनुरोध. बहुत ही धीमी और बोझिल आवाज़ थी वो. मैं ख़ामोशी से अपने क़दमों को उसके पीछे ले जाते हुए उसके उसी ड्राइंग रूम में पहुँच गयी थी जहाँ पहली बार मयूरी को देखा था लेकिन उस दिन और आज के दिन में बहुत अंतर था. आज वो ड्राइंग रूम बिलकुल मयुशियत भरा था. उसकी मालकिन उदासीन थी और वहां का माहौल ग़मगीन. थोड़ी देर तक वहां हमदोनो खामोश बैठे रहे , मैं समझ नही प् रही थी की क्या बोलूं? कैसे बोलूं? और किस बारे में बोलूं? इसी उधेर-बुन में मैं अपने नज़रों को ज़मीं में गडाये बैठी थी, एक-दो दफ़े मयूरी की ओर देखा भी तो हलक से कोई शब्द न निकला था. अपने अन्दर जितनी सहस मैंने महसूस की थी कभी उन सभी के टूकड़ों को जोड़ते हुए मैंने बड़ी मुश्किल से अपना हाथ उठाया और उसके हाथों पर रख दिया. उसने अपनी नज़रें उठाई और मेरी तरफ देखा.

मैंने उसकी आँखों में देखा और मन ही मन ये पूछने की कोशिश करती रही कि हुआ क्या है?

मैं कुछ बोल पाती उससे पहले ही उसने मेरे हाथ को जोर से पकड़ कर अपने हथेलियों से दवाते हुए मेरी तरफ देखा और मुझे गले लगा कर खुद को मेरे सुपुर्द कर फफक –फफक कर रो पड़ी...

इससे पहले की मैं कुछ समझ पाती मयूरी मेरे कंधो पर रो रही थी, उसके रोने की आवाज़ मुझे भीतर तक झिंझोर रहे थे. उसकी गरम हथेलियां बिलकुल ठंढी पद गयी थी और वो खुद ऐसे मेरे कंधे पर निढाल हो गयी थी जैसे कोई कांच का गिलास अचानक हाथ से छुट कर ज़मीन पर गिर गया हो और उसके अनगिनत टुकड़े ज़मीन पर पसर गये हों ... बहुत देर तक वो उसी तरह रोती रही और मैंने उसे सान्तवना देने के उद्देश्य से अपनी बाँहों में बच्चे की भांति समेत लिया. लगभग २५-३० मिनट तक बिखर कर रोने के बाद उसने खुद को समेटने की कोशिश करते हुए खुद को मुझसे अलग किया और सोफे पर निढाल हो लेट गयी. मुझे किसी अनहोनी की आशंका हो रही थी , मैं जल्दी से कित्चें की तरफ भागी और गिलास में पानी ला के उसके चेहरे पर छींटे मारी , गिलास के बचे हुए पानी को मयूरी ने मेरे हाथो से ले कर पी लिया. थोड़ी देर तक वैसे ही शांत बैठने के बाद उसने अपने चेहरे को पोंछ लिया और सुबुकते हुए खुद को सँभालने की कोशिश करती रही , मैं एक मूक-दर्शक की तरह वहां बैठी उसे देखती रही. और मन-ही-मन मयूरी को टूटते-बिखरते और समेटते हुए देखा था मैंने. पिछले ४० मिनट में मैंने एक अलग व्यक्तित्व को देखा था जो बिलकुल अंजान था मेरे लिए. मैंने माहौल की नजाकत को समझते हुए उससे कुछ न पूछने का मन बना लिया था. बात को यु ही घुमाने के लिए मैंने उससे कहा:: मयूरी, आपकी आँखों में आंसू अच्छे नही लगते .  कितनी खुबसूरत आँखे हैं आपकी !

मेरी बातों को सुनने के बाद उसने अपने होठो पर औपचारिकता की एक फीकी सी मुस्कान लाने की कोशिश करते
 हुए उत्तर दिया:

    बरसात के बाद अक्सर मौसम सुहाना हो ही जाता है..." 
और उसके आँखों से आंसुओं की एक पतली-सी धार उसके गालों पर ढलक गयी....
                                                                               

 To be continue…