Thursday, 29 September 2016

Unofficial Kavyanjali: अल्फ़ाज़

Unofficial Kavyanjali: अल्फ़ाज़: ये मेरे अल्फ़ाज़ कुछ ऐसे हैं जिन्हें पढ़ने के बाद शायद लोग लाइक करके आगे बढ़ जायेंगे लेकिन उनमें कुछ ऐसे भी परिंदे होंगे जिनकी उँगलियाँ लाइक ब...

अल्फ़ाज़

ये मेरे अल्फ़ाज़ कुछ ऐसे हैं जिन्हें पढ़ने के बाद शायद लोग लाइक करके आगे बढ़ जायेंगे लेकिन उनमें कुछ ऐसे भी परिंदे होंगे जिनकी उँगलियाँ लाइक बटन पर होगी  लेकिन मन ... किन्ही ख्यालों में या फिर अतीत की वादियों में ... अतीत को वादी कहने से सायद आप नाराज़ भी हो जाएँ , लेकिन इसकी जरुरत नही है दोस्तों ..


अतीत को वादी कहा है मैंने क्यूँकि बेशक उनमे कुछ गम होंगे लेकिन कुछ खुशियों की याद भी  तो होगी....  



सीखा जाते हैं गम-ए-गफलत भी,
जीने का सलीका कभी –कभी ,
आ जाती है हँसी अकस्मात ही होठों पर
कि कुछ गम भी दे जाते हैं जीने की वजह कभी –कभी ..

यूँ तो होता नही कुछ भी ज़माने में यूँही
कि लबों पर आया हर लफ्ज़ ग़ज़ल बन जाये,
बेपरवाहियों में कही हुई बातें भी
कर जाते हैं घायल ज़ज्बात कभी – कभी...

डूब जाती है सूरज-की गर्मी भी
इन नम आंखो में कभी –कभी,
कि सूख जाते हैं अधर भी
डूब के ग्लास-ए- जाम में कभी...

सीखा जाते हैं गम-ए-गफलत भी,
जीने का सलीका कभी –कभी ,
यूँ बेरुखी न दिखाओ ज़िन्दगी से दोस्त
कि साहिल भी डूब जाते हैं
अरमान – ए-दिल  के अशकों में कभी- कभी...”

                                              अर्पणा शर्मा

Tuesday, 27 September 2016

Ranbhumi

खतरे का उदघोष बजा है, रणभूमी तैयार करो,
सही वक्त है, चुन चुन करके, गद्दारों पर वार करो,

आतंकी दो चार मार कर हम खुशियों से फूल गए,
सरहद की चिंताओं में हम घर के भेदी भूल गए,

सरहद पर कांटे हैं, लेकिन घर के भीतर नागफनी,
जिनके हाथ मशाले सौंपी, वो करते है आगजनी,

ये भारत की बर्बादी के कसे कथानक लगते हैं,
सच तो है दहशतगर्दों से अधिक भयानक लगते हैं,

संविधान ने सौंप दिए हैं अश्त्र शस्त्र आज़ादी के,
शिक्षा के परिसर में नारे भारत की बर्बादी के,

अफज़ल पर तो छाती फटती देखी है बहुतेरों की,
मगर शहादत भूल गए हैं सियाचीन के शेरों की,

जिस अफज़ल ने संसद वाले हमले को अंजाम दिया,
जिस अफज़ल को न्यायालय ने आतंकी का नाम दिया,

उस अफज़ल की फांसी को बलिदान बताने निकले हैं,
और हमारे ही घर में हमको धमकाने निकले हैं,

बड़ी विदेशी साजिश के हथियार हमारी छाती पर,
भारत को घायल करते गद्दार हमारी छाती पर,

नाम कन्हैया रखने वाले, कंस हमारी छाती पर,
माल उड़ाते जयचंदों के वंश हमारी छाती पर,

लोकतंत्र का चुल्लू भर कर डूब मरो तुम पानी में,
भारत गाली सह जाता है खुद अपनी रजधानी में,

आज वतन को, खुद के पाले घड़ियालों से खतरा है,
बाहर के दुश्मन से ज्यादा घर वालो से खतरा है,

देशद्रोह के हमदर्दी हैं, तुच्छ सियासत करते है,
और वतन के गद्दारों की खुली वकालत करते है,

वोट बैंक की नदी विषैली,उसमे बहने वाले हैं,
आतंकी इशरत को अपनी बेटी कहने वाले हैं,

सावधान अब रहना होगा वामपंथ की चालों से,
बच कर रहना टोपी पहने ढोंगी मफलर वालों से,

राष्ट्रवाद के रखवालों मत सत्ता का उपभोग करो,
दिया देश ने तुम्हे पूर्ण, उस बहुमत का उपयोग करो,

हम भारत के आकाओं की ख़ामोशी से चौंके हैं,
एक शेर के रहते कैसे कुत्ते खुलकर भौंके हैं,

अगर नही कुछ किया, समूचा भार उठाने वाले हैं,
हम भारत के बेटे भी हथियार उठाने वाले हैं,