धुल में लोटता बचपन,
झूलों से लटकता बचपन,
कभी हाथ पकड़ एक-दूजे का,
गोल-गोल घूमता बचपन.
क्षण में नाराज़, क्षण में
मस्त
जिसके आगे सारी दुनिया पस्त
कागज की वो कश्तियाँ
वो दोस्तों की टोलियाँ
बारिश में भींगता बचपन,
कभी पखियों-सी किलोलें
कभी बेसबब किलकारियां
कभी तितलियों सा-उड़ता,
कभी गोरैया-सा फुदकता बचपन
क्लास –रूम में हल्ला-हंगामा
तो कभी प्लेग्राउंड में शोर मचाना
प्रेयर से पहले की वो कब्बडी,
लंच के बाद की अन्ताक्षरी,
जब जाना न था
दोस्ती का मतलब,
तब से है अपनी यारी...
बीत-गये साल-दर-साल
फिर भी
साथ चलता है जैसे अपना बचपन..
वही धुल में लोटता बचपन,
झूलों से लटकता बचपन.......
H@PPY
FRIENDSHIP D@Y..