Friday, 23 November 2018

अगर तुम साथ हो


                  चित्र:- साभार गूगल से

आज रिया सुबह से ही बहुत खुश थी. वैसे तो वो हमेशा ही खुशगवार रहती थी लेकिन उसकी ख़ुशी में ये चुहलबाज़ियाँ आज बड़े दिनों बाद नज़र आई थी.

करन: “क्या बात है ! आज तो बड़ी ही चहक रही हो ?”

रिया: “हाँ करन, ख़ुशी की तो बात है. आज कितने सालों बाद हम अपने पुराने दोस्तों से मिलने वाले हैं . मुझे तो रात भर नींद ही नही आई.”

करन: “ ओहो! ये बात”

करन अपना टोवेल लेकर बाथरूम में नहाने जा चूका था और रिया किचेन में उसके लिए नास्ता तैयार करने में मशगुल हो गयी.  शाम को उनके घर उनके पुराने फ्रेंड्स आने वाले थे, पुरे ६ साल बाद मिलने का प्लान बन पाया था. लेकिन करन को ऑफिस में वर्क लोड ज्यादा होने के कारण छुटियाँ नही मिल पा रही थीं और यही कारण था कि सब दोस्तों ने करन और रिया के घर पर ही वीकेंड स्पेंड करने का प्लान बनाया था. वीकेंड के बाद उनका ३-४ दिन साथ में घुमने का भी प्लान था.

दोपहर के २ बजते ही करन अपनी ऑफिस की कुर्सी से उठने की कोशिश कर रहा था लेकिन काम ज्यादा होने की वजह से उसे ऑफिस से निकलते-निकलते ३:३० हो गये थे. जल्दी जल्दी अपने घर की तरफ भागा और जब घर पहुंचा तो घर की डोरबेल बजने से पहले ही रिया ने दरवाजा खोलते हुए सिकायत के लहजे में कहा: क्या करन ! आज तो जल्दी आ जाते.

करन फ्रेश होने के बाद जब हॉल में आया तो उसने नोटिस किया रिया सुबह के कपड़ों में अब तक चक्करर्घिनी की तरह पुरे घर को सँभालने में लगी है. किचेन से खाने की खुशबू आ रही थी. घर बिलकुल साफ़-सुथरा था, वास में उसने गार्डन से तोड़कर मोगरे लगाये थे, करन और उसकी शादी की फोटो जो लगी थी उसे भी साफ़ कर बड़े ही संजीदे से टेबल पर रखा था. उसके बाल अभी भी क्लचर से बस थोड़े से अटके थे बाकी काम करते करते उसके चेहरे पर लटक गये थे. चेहरा सुख कर छोटा-सा हो गया था और आँखों से थकान टपक रही थी. फिर भी रिया बिना कुछ कहे अपने काम में लगी थी. उसके होठों की मुस्कान अब तक बिलकुल सुबह की पहली किरण की तरह मासूम लग रही थी.

शाम के ६ बजने को थे और रिया अब फ्रेश हो कर तैयार हो गयी थी. उनके फ्रेंड्स भी आ गये. सबके रंग –ढंग बदले से नज़र आ रहे थे लेकिन उनकी दोस्ती अब भी वैसी ही थी. बातों –बातों में पता ही नही चला उन्हें कि कब कॉलेज की तरह ही वो लोग २ टोलियों में बट गये थे, एक तरफ लड़के और दूसरी तरफ लड़कियां. रिया, सोनिया, साक्षी एक टीम में तो करन, राहुल, अर्नब ,सुरेश दुसरी टीम में.बातों का सिलसिला कॉलेज के कारनामों से शुरु हुआ था और अब रात के २ बजे भी उनकी बातों की सुई उन्ही यादों में उलझी थी.

रिया और करन अपने mca के फाइनल इयर में ही नजदीक आ गये थे. उनकी दोस्ती कब कैसे प्यार में बदल गयी थी पता ही नही चला था उन्हें. दोस्तों के साथ फिर से वो आज अपने उन्ही यादों को , लम्हों को फिर से जी रहे थे, वो सारी बातें, प्रोमिसेस सब कुछ याद आ रहा था उन्हें.

सुबह के ४:३० बजे जब उनकी महफ़िल टूटी तो सबने नींद पूरी करने का फैसला किया और अपनी अपनी जगह पकड़ कर सोने गये. लेकिन करन की आँखों से नींद उड़ गयी थी. वो तो अब भी उन्ही यादों में अटका था. उसे सबकुछ याद आ रहा था.

कैसे रिया टॉप १० में गिनी जाती थी तो करन टॉप ३० में भी अपनी जगह नही बना पाया था. धीरे-धीरे जब उन दिनों दोनों की नजदीकियां बढ़ी तो रिया की जॉब लग चुकी थी. हाई प्रोफाइल कंपनी, अच्छी सैलरी. दूसरी तरफ करन स्ट्रगल करता रहा. कॉलेज छोड़ने के बाद भी जब करन को कहीं अच्छी जॉब नही मिल पाई तो रिया ने ही उसे अपने फ्रेंड के थ्रू रेफर कराया था और करन की जॉब लगी थी. २ साल बाद करन और रिया ने अपने घरवालों की मर्जी से शादी की थी.

शादी के शुरुआत में तो सब नार्मल था लेकिन टाइम के साथ करन को ऐसा लगने लगा था कि रिया उससे सुपीरियर है और ये बातें उनके रिश्ते में आने लग गयी थी. जब रिया को इस बारे में पता चला था तो वो shocked थी लेकिन कुछ कहा नही था उसने. कुछ महीनो बाद ही रिया ने करन से कहा था : रिया अपने जॉब से थोड़े टाइम के लिए ब्रेक लेना चाहती है. करन ने भी हामी भरी थी और उसके बाद ही रिया ने जॉब क्विट किया था.

आज इस बात को ३ साल होने को थे लेकिन रिया ने वापस कभी भी जॉब ज्वाइन करने की कोई सिरकत नही की थी. करन भी अपने काम में उलझ गया था और इस और उसने कभी ध्यान ही नही दिया था. इन ३ सालों में कितना कुछ बदल गया था. रिया जो हमेशा गाती-गुनगुनाती रहती थी अब खामोश-सी रहती थी. सबको अपनी बातों से हँसाने वाली रिया खुद ही हँसना भूल गयी थी. आज जब इतने दिनों बाद करन ने फिर से रिया को मुस्कुराते देखा तो जैसे फिर से अपना दिल हार गया था.

इन्ही ख्यालों में डूबा करन नींद के आगोश में जा चूका था. जब उसकी आँख खुली तो हॉल से ठहाकों की आवाजें आ रही थीं. बाहर आया तो उसकी नज़रे ठहर गयी थी और आंखे फटी की फटी रह गयी थी. सामने ब्लू जीन्स और वाइट टॉप में रिया खड़ी थी, उसने अपने बालों को सेमी-जुड़ा बनाया था. आँखों में पतली काजल की लकीरें और होठों पर ६ साल पहले की मुस्कान. रिया की खूबसूरती देख करन उसमे खोता चला जा रहा था.

रिया के होठो पर मुस्कान और चेहरे पर ख़ुशी देख करन उस रिया को अपने साथ रहने वाली रिया से compare कर रहा था. कहाँ ये तब्बसुम और कहाँ डेली की रिया रुखी-मुरझाई सी. जैसे-जैसे वो रिया के इस रूप को याद करता उसे खुद से नफरत होती जा रही थी क्युकी उसे ऐसा लग रहा था जैसे इस रिया को खोने का कारण वह खुद है और ये सच भी तो कितना था.

आज ३ साल बाद अचानक करन का मन सब कुछ छोड़-छाड़ कर रिया को अपनी बाँहों में समेट फिर से जीने का कर रहा था. जहाँ कोई फ़िक्र, कोई ग्लानी, कोई सिकवा, कोई सिकायत न हो. आज वह इस मौके को खोना नही चाहता था लेकिन दोस्तों के बीच रिया से अपने प्यार का इज़हार करने में झिझक रहा था. ये झिझक शायद उसकी ग्लानी थी. लेकिन रिया ने करन का दिल भाँप लिया था और आज फिर से अपने बेबाकपन से उसने सबके सामने करन से अपने प्यार का इज़हार भी कर दिया था और उसे माफ़ भी.

रिया ने बड़े ही प्यार से करन का हाथ अपने हाथों में लेकर कहा था:- “आइ ऍम कम्पलीट, अगर तुम साथ हो.”

आज दोस्तों के इस रीयूनियन ने इन दो दिलों को फिर से एक कर दिया था, और शायद इस बार उम्रभर के लिए.
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रिश्तेदारी ... तेरी मेरी



                                          चित्र: - साभार गूगल 

घर में साफ़-सफाई और पेंटिंग का काम लगा था और दिवाली के साथ-साथ निशु के पहले बच्चे की डिलीवरी भी नजदीक आ गयी थी.

घर में कामों की भरमार थी और उन्हें करनेवाला कोई नहीं. डेट नजदीक होने के कारण निशु के लिए भरी-भरकम सामान इधर-उधर करना संभव नही था और उसके पति निलेश के पास टाइम नही था.

वैसे तो निलेश बड़े ही शांत स्वभाव का था लेकिन उसके विचार बड़े ही खुले और अपनत्व से परिपूर्ण थे. उसने कभी निशु को अकेलेपन का एहसास नही होने दिया था, बाहर के काम, अपने ऑफिस के काम के साथ ही घर के कामों में भी उसका हाथ बटाता.

जब से उसे पता चला था कि उसके घर भी नन्ही-सी किलकारी गूंजने वाली है, वो ख़ुशी से फुला न समा पा रहा था. अपने परिवार से, अपने रिश्तेदारों से, दोस्तों से, सबसे वह अपनी इस ख़ुशी को बाटता.

जैसे-जैसे समय बीतता जा रहा था उसकी ख़ुशी दोगुनी होती जा रही थी और परेशानी भी. निशु की देख-भाल को लेकर बहुत ही सचेत होता जा रहा था वो. इतने बड़े शहर में अकेले सबकुछ मैनेज करना थोडा कठिन लग रहा था. अब उसे हेल्पिंग हैंड्स की जरुरत महसूस हो रही थी. उसने अपने घरवालो से इस विषय में बात की लेकिन सबके पास कोई न कोई अपना कारण था, किसी ने भी आकर उनके पास रहना अपने लिए कठिन कहा. किसी ने भी उनके पास आने से इंकार नही किया था लेकिन टालम-टाल उनकी बातों में अवश्य ही रहता.

निलेश सबसे बड़े ही सहज भाव से कहता कोई बात नही, वो सब काम भी तो जरुरी है. लेकिन, मन ही मन उसे चिंताए घेर लेती. दूसरी तरफ निशु, सब कुछ देख रही थी, समझ रही थी लेकिन चाह कर भी कुछ बोल नही पाती. निशु अपने मायके से किसी को बुलाने की सोचती फिर ये सोच कर रुक जाती कि कहीं ससुरालवाले बुरा न मान जाएँ. संकोच के कारण चाहते हुए भी वो अपने घर से मदद नही ले पा रही थी.

जब कभी निलेश से इस बारे में बात करना चाहती, निलेश की अपने घर से किसी के आने की उम्मीद देख चुप हो जाती. उसे डर था कि कहीं निलेश उसकी बातों का कोई दूसरा अर्थ न निकाल ले.

निलेश और निशु की शादी को लगभग २ साल होने को आये थे, लेकिन बड़े शहर में रहने के कारण निशु का अपने ससुराल जाना कम ही रहा. इस कारण ससुरालवालों से ठीक से मिलना-जुलना भी नही हो पाया था. न तो उन्हें समझने का समय मिला था और नही उनकी सोच को.

हर दुसरे-तीसरे दिन जब निलेश के घरवालों को फ़ोन करने का सिलसिला बंद होता तो दोनों पति-पत्नी एक दुसरे के आँखों से बातों को समझने का पर्यत्न करते , होठ दोनों के खामोश ही रहते.

वो कहते हैं न, “टाइम flies”. अब सामने दिवाली भी थी और घर में काम भी लगा था. ऊपर से कभी भी लेबर पैन होने की शंका मन में लगी रहती. और देखते ही देखते वो रात भी आ गयी जिसकी सुबह उन दोनों के जीवन में खुशियों का पिटारा ले कर आई थी. अपने हाथों में अपनी परछाई को पाकर निलेश चहक उठा. फिर से सिलसिला शुरु हुआ घरवालों को फ़ोन पर खुशख़बरी देने का.

निलेश ने बड़ी मिन्नतों के साथ कहा था सब से कि वो आये एक बार उसकी “नन्ही परी” को देखने, उसके मासूम से चेहरे पर अपना हाथ फेर उसे आशीर्वाद देने.

बधाइयों का ताता लगा रहता फ़ोन पर लेकिन घर का दरवाज़ा रिश्तेदारों से सुना ही रहा. बच्चे के आने के बाद निशु के परिवार वाले उनसे मिलने आये भी तो उनसे मिलकर कुछ ही दिनों में अपनी जिम्मेदारियों को पूरा करने अपने घर को लौट गये. रुकने के लिए न तो निलेश की तरफ से कोई आग्रह हुआ और न ही निशु उन्हें कह पाई. संकोच मन में अब भी था.

बच्चे के आने के साथ ही जिम्मेदारियों का पिटारा बढ़ गया था. निलेश और निशु अब भी एक दुसरे की पूरी मदद करते. लेकिन जो इंतज़ार उन्हें पिछले ३ महीनों से था वही इंतज़ार उनकी ज़िन्दगी में वापस आ गया था, रिश्तेदार तो थे लेकिन उनमे कोई उनका हेल्पिंग हैण्ड बनने को तैयार नही था शायद.

निशु जब भी बच्चे को सँभालने में अपने को अक्षम पाती उसे अपनी माँ याद आती लेकिन चाहते हुए भी न तो वो उन्हें अपने पास रोक पाई थी और न ही उसकी माँ अपनी नवजात नावाशी के पास रुक पाई थी.

निलेश और निशु जब भी अपने बच्चे को देखते उनकी आँखे चमक उठती , उनकी खुशियाँ छलक पड़ती . उन्हें अपना बचपन नज़र आ रहा था और शायद नये सपने आँखों में उतर चुके थे, अब तो बस उनमे रंगों का भरना बाकी था जैसे.

निलेश की आँखों में अब इंतज़ार के साथ साथ निराशा की एक धुंधली सी परछाई नज़र आने लगी थी लेकिन उसके मन में शायद उम्मीद की एक किरण अब भी थी.
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