Wednesday, 29 November 2017

शृंखला --- इतिहास भारत का कहानी -- “ पलक्कड़ किला ”

Palakkad Fort – पलक्कड़ किला, जिसे टिपू के किले के रूप में भी जाना जाता है, यह किला केरल के छोटे जिले में स्थित है और केरल के सबसे अच्छे संरक्षित किलों में से एक है। किला टीपू सुल्तान के साहस और बहादुरी का प्रतीक है, इसलिए इसे टिपू का किला कहते है।
पलक्कड़ किला, केरल – Palakkad Fort
इतिहासकार के रिकॉर्ड के अनुसार, यह माना जाता है कि पलक्कड़ राजा का राजा वास्तव में ज़मोरीन का सहायक था। 18 वीं सदी की शुरुआत के दौरान उन्होंने खुद को ज़मोरिन से अलग कर दिया और स्वतंत्र बन गया। हालांकि ज़मोरीन ने उनके पर हमला किया और वह कुछ मदद मांगने के लिए टीपू सुल्तान के पिता हैदर अली के पास आए।
मौका देखकर हैदर अली ने रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण स्थान के स्वामित्व को हासिल करने के लिए जब्त किया, और इस किले को ईस्वी 1766 में हैदर अली द्वारा पुनर्निर्मित हैं।
1784 में, ग्यारह दिनों के सिज के बाद, किले को कर्नल फुलरटन के तहत ब्रिटिश द्वारा कब्जा कर लिया गया था। बाद में कोज़िकोड ज़मोरीन के सैनिकों ने किले पर कब्ज़ा कर लिया, लेकिन 17 9 0 में अंग्रेजों ने इसे पुनः कब्जा कर लिया। उन्होंने फिर से किले को पुनर्निर्मित किया।
टीपू सुल्तान ने 1799 में अंग्रेजों के साथ एक मुठभेड़ में अपना जीवन खो दिया और बाद में उसके नाम पर जाना जाने लगा।
                   पलक्कड़ किले की वास्तुकला – Palakkad Fort Architecture
किला एक चौकोर आकार में बनाया गया है। राजसी किले में चारों तरफ विशाल दीवार और गढ़ है। प्रारंभिक समय के दौरान किले का प्रवेश द्वार पुल के माध्यम से होता था, जिसे बाद में बदल दिया गया था, बाद में इसे स्थायी रूप में किया गया था।
भगवान हनुमान का मंदिर भी हनुमान के समर्पण में बनाया गया है जो किले के अंदर पाया जाता है और इसके साथ ही यहां एक खुली हवा की सभागार है जिसे एक उप-जेल और शहीद का स्तंभ कहा जाता है।

पलक्कड़ किले का आकर्षण – Attraction of Palakkad Fort

पलक्कड़ किला का भव्य ढांचा उन प्रतीकों में से एक है जो भारतीय शासकों और ब्रिटिशों के बीच हुई कई युद्धों के बारे में बात करता है। किले परिसर में एक मंदिर है जो कि भगवान हनुमान को समर्पित है।
किले परिसर के अंदर एक खुली हवा की सभागार राप्पड़ी’, एक शहीद का स्तंभ और एक उप-जेल भी है।

शृंखला -- इतिहास भारत का कहानी -- “ मदन महल किला ”

Madan Mahal Fort – मदन महल का किला मध्यप्रदेश के जबलपुर शहर में लोकप्रिय पर्यटक आकर्षण है जिसे दुर्गावती किले के नाम से जाना जाता हैं। मदन महल का किला एक ग्रेनाइट पत्थर पर बना है, जो उसी नाम की पहाड़ी पर करीब 515 मीटर की ऊंचाई पर है।
मदन महल का किला 11 वीं शताब्दी में 37 वें गोंड शासक मदन सिंह के शासनकाल के तहत बनाया गया है।
यद्यपि मदन महल किला को किला कहा जाता है लेकिन मूल रूप से यह एक सैन्य पोस्ट था जिसे वॉच टॉवर और सैन्य बैरक के रूप में इस्तेमाल किया गया था।
किला गोंड रानी रानी दुर्गावती से और उनके बेटे मदन सिंह के साथ जुड़ा हुआ है। जो दसवें गोंड शासक थे। रानी दुर्गावती अंततः मुग़ल से लड़ते हुए शहीद हुईं थी।
जबलपुर के शासकों ने जबलपुर, मंडला और आसपास के क्षेत्रों पर राज्य किया। मदन महल उनके द्वारा निर्मित एक ऐसा किला है। यद्यपि बिल्कुल वास्तुशिल्प के चमत्कार नहीं, छोटे किले को भारत में प्राचीन स्मारकों के रूप में देखा जाता है।
मदन महल किले की वास्तुकला – Madan Mahal Fort Architecture
किले ने शासक, अस्तबल, युद्ध कक्ष, प्राचीन लिपियों, गुप्त मार्ग, गलियारों और एक छोटे से जलाशय के मुख्य सुख-मंडल को सम्मिलित किया, जो कि सभी किले के अंदर दिखाई दे सकते हैं। किले के कमरों को रणनीतिक रूप से डिजाइन किया गया था, मुख्य ढांचे के सामने जो शायद शाही सेना के सैनिकों को दर्ज करा रहे थे।


हर इन्सान से कैसे सीखे?

                   हर इन्सान से कैसे सीखे?

            
जानवर और इन्सान में केवल एक समझ और ज्ञान का फर्क होता है, इन्सान की बुद्धि विकसित हो चुकी है. और वो धीरे-धीरे सीखता जा रहा है.
अगर आज के वक्त में कोई भी इन्सान कामयाब है तो उसकी एक बात जरुरी अच्छी होगी की वो हर वक्त सीखता है. सीखना ही इन्सान की एक पहचान है, क्योंकि जो सिख रहा है वही जिन्दा है बाकी सब अपनी जिंदगी में केवल समय को जाते देख रहे है.
चाहे आपका कोई भी फील्ड हो, हर इन्सान को काफी चीजे आनी जरुरी है, जैसे डॉक्टर को बात अच्छे से करनी आनी चाहिए नहीं जो डॉक्टर की पढाई में सिखाया जाता, एक अच्छे सेल्समेन का Attitude अच्छा होना चाहिए वरना कोई भी व्यक्ति उससे प्रोडक्ट नहीं खरीदेगा.
क्योंकि कहा जाता है, लोग आपके प्रोडक्ट को नहीं आपके attitude को खरीदते है, फिर चाहे आप कोई भी बेचों वो माइने नहीं रखता.
अगर simple language में कहूँ तो “जो दिखता है वही बिकता है”.
तो यह Attitude को सीखे कहा से? या डॉक्टर है तो उसे अच्छे से बात करनी सीखनी कहा से?
इसका जवाब है, हर इन्सान केवल बुक और एजुकेशन से नहीं सीखता है, कुछ बाते आपको लोगो से और आस पास के बदलते माहोल से ही सीखनी होती है.
उसके लिए आपके पास में हर इन्सान से सिखने की तकनीक भी होनी चाहिए
इन तरीको से अपना ज्ञान हर इन्सान से लेकर बढ़ाते रहे

सबसे पहले अपने अवलोकन शक्ति को बढ़ाये

अवलोकन का मतलब होता है आप कितनी बारीकी से चीजो को देखते और सुनते हो. अगर आप किसी इन्सान से मिलो तो उसके बोलने के तरीके से कुछ सीखो, उसके खड़े होने के तरीके से कुछ सीखो, उसके चलने के और हर एक्टिविटी से सीखते चले जाओ.
इसके लिए आपकी अवलोकन शक्ति (ग्रास्पिंग कैपेसिटी) जितनी अच्छी होगी उतने ही जल्दी से आप लोगो को समझते जाओगे और उनसे सीखते जाओगे.
आप बस में, ट्रेन में हर जगह हर इन्सान से सीखते वक्त इतने एक्टिव हो जाओगे की तब आप हर पल कुछ न कुछ सिख रहे होगे.
आपको आलस दूर-दूर तक नहीं दिखेगा, आलस इन्सान को तब आता है जब इन्सान के पास कुछ interesting करने को नहीं रहता, लेकिन जब आप हर इन्सान से सीखोगे तब आपको जिंदगी भी अच्छी लगेगी.

इन्टरनेट पर अपने फील्ड के व्यक्ति से जुड़े

इन्टरनेट पर भारतीय लोग भी काफी वेबसाइट/ब्लॉग और YouTube पर चैनल बना रहे है, अगर आप चाहो तो उनसे भी कांटेक्ट करके बात करके उनसे भी काफी चीजे सिख सकते है.
उनके लिखे हुए ब्लॉग पर आर्टिकल पढ़ कर या YouTube की हर एक ज्ञान से भरी हुई विडियो देख कर सिख सकते है.
जैसे मानलो आपको राइटिंग पसंद है, तो इन्टरनेट पर आपको कई ब्लॉग मिल जाएगी जो अच्छा राइटर बनने को गाइड करते है.

अपनों से छोटो से भी सीखो

ऐसा जरुरी नहीं है अगर आप उम्र में या क्लास में आगे है तो आपको सब आता है, ऐसा आपके दिमाग में आना ही नहीं चाहिए की आपको इस विषय में सब आता है, क्योंकि अगर आप ऐसा करते है तो आपनी ज्ञान के बढ़ने के आकड़े को कम कर देते है.
आपको हर इन्सान से ज्ञान को लेना है, हर वक्त ज्ञान को लेने के लिए सतर्क रहना है.

असफल लोगो से भी सीखो

हाहा….!! आपको जरुर यह सुनने में अजीब लगा होगा कि उनसे क्या सीखना?
चलिए मैं एक उदहारण से इस बात को समझाती हूँ.
मानलो आप एक मेडिकल खोल रहे है, और आप मेरी इस बात को मान कर एक असफल मेडिकल चलाने वाले से सलाह ली तो आपको यह बात जानने को मिली की गलत जगह पर मेडिकल नहीं खोलना मेडिकल के लिए एक अच्छी जगह भी होना चाहिए.चाहिए इसी तरह के कई टिप्स एक असफल इन्सान आपको दे सकता है जिससे आप समझ पाएंगे की सफल होने के लिए आप को क्या क्या सावधानियां बरतनी है इत्यादी.  

सबसे इम्पोर्टेन्ट: ध्यान एक तरफ

अगर आपका ध्यान एक तरफ नहीं है तो कभी भी बारीक़-बारीक़ बातो को गौर करके नहीं सीख सकते. जितना आपका ध्यान लगाने की क्षमता अच्छी होगी उतने जल्दी किसी भी समस्या से आप समझ कर हल कर के बाहर आ सकते है.
·         टिप: घ्यान बढाने के लिए आप मैडिटेशन कर सकते है.
तो शुरू होता है अब आपके सिखने का सफ़र, क्योंकि जो इन्सान सिख रह रहा है वो जिन्दा है, जिसने सीखना बंद किया वो जिन्दा लाश है.


Monday, 30 October 2017

रूप के बादल यहाँ बरसे....

 रूप के बादल यहाँ बरसे,                                       
  कि यह मन हो गया गीला !
चाँद-बदली में छिपा तो बहुत भाया
       ज्यों किसी को,
    फिर किसी का ख्याल आया
  और, पेड़ों की सघन-छाया हुई काली 
   और, साँसे कांपी,प्यार के डर से
     रूप के बादल यहाँ बरसे ....

     सामने का ताल,
      जैसे खो गया है
दर्द को यह क्या अचानक हो गया है?
विहाग ने आवाज़ दी जैसे किसी को...
कौन गुज़रा प्राण की सुनी डगर से !
   रूप के बादल यहाँ बरसे....

     दूर, तुम !
   दूर क्यों हो, पास आओ
 और, ऐसे में ज़रा धीरज बंधाओ...
घोल दो मेरे स्वरों में कुछ नवल स्वर,
आज क्यों यह कंठ, क्यूँ यह गीत तरसे !

     रूप के बादल यहाँ बरसे....

Saturday, 28 October 2017

श्रृंखला---“अनमोल कहानी” कहानी –“होशियार लड़की”

बहोत सालो पहले की बात है, एक छोटे गाव में, किसी व्यापारी ने बदकिस्मती से एक साहूकार से बहोत

 ज्यादा पैसे ले रखे थे। साहूकार, जो पुराना और चिडचिडा था, वह अपने पैसो के बदले में व्यापारी से 

सौदा करना चाहता था। वो कहता था की यदि उसकी शादी व्यापारी की खुबसूरत बेटी से हुई तो वह 

उसके द्वारा लिए पैसो को भूल जायेंगा। व्यापारी के इस प्रस्ताव से व्यापारी और उसकी बेटी दोनों ही 

चिंतित थे।

तभी व्यापारी ने कहा की – उसने एक खाली बैग में एक सफ़ेद और एक कला कंकड़ रखा है। उस लड़की को बैग में से कोई भी एक कंकड़ निकालना था। यदि उसकी बेटी ने काला कंकड निकाला तो वह लड़की साहूकार की पत्नी बन जाएँगी और उसकी पिता का कर्ज माफ़ कर दिया जायेंगा और यदि उस लड़की ने सफ़ेद कंकड़ निकाला तो उस लड़की की साहूकार से शादी नही होंगी और उसके पिता का कर्ज भी माफ़ कर दिया जायेंगा। लेकिन यदि उस लड़की ने कंकड़ निकालने से मना किया तो उसके पिता को जेल जाना होंगा।
उस समय पिता और बेटी व्यापारी कंकड़ भरे रास्ते पर खड़े थे। जैसा की साहूकार और उनके बिच सौदा हुआ था। साहूकार दो कंकड़ उठाने के लिए निचे झुका। जैसे ही साहूकार ने दो कंकड़ उठाये उस लड़की की तीखी नज़रो को दिख गया की साहूकार ने दोनों की काले कंकड़ उठाये और उन्हें ही बैग में डाला है। और ऐसा करने के बाद साहूकार ने उस लड़की को बैग में से कोई एक कंकड़ चुनने कहा।
यदि उस लड़की की जगह आप होते तो उस समय क्या करते? यदि आप उसे सलाह देना पसंद करोगे, तो आप उसे क्या सलाह दोंगे? ध्यान से परिस्थिती को देखने के बाद तीन ही संभावनाये हो सकती है
1. लड़की कंकड़ चुनने से इंकार कर दे।
2.
लड़की ये बता दे की साहूकार ने बैग में दोनों ही काले कंकड़ डाले है, और साहूकार को धोखेबाज साबित करे।
3.
लड़की उस बैग में से काले कंकड़ को चुने और अपने पिता को बचाने के लिए खुद को उस साहूकार से हवाले कर दे।ताकि उसके पिता का कर्ज भी माफ़ हो और उन्हें सजा भी ना मिले।
ये कहानी इस इरादे से कही गयी है की हम पश्च्विक पर तार्किक सोच के बिच के अंतर को जान सके।
उस लड़की ने बैग में हात डाला और कंकड़ बाहर निकाले। उसने जल्दी से एक कंकड़ निकाला और कंकड़ भरे रास्ते पर निकाले हुए कंकड़ को गिरा दिया। जल्द ही वह कंकड़ रास्ते पर दुसरे कंकडो में मिल गया।
उस लड़की ने तुरंत कहा, “ओह! मेरे हात से तो कंकड़ निचे गिर गया। लेकिन अभी भी कोई बात नही, हम अभी भी बैग में जो कंकड़ बचा हुआ है उस से पता कर सकते है की मैंने कोनसा कंकड़ चुना था।
अब जब देखा गया तो बैग में सिर्फ काला कंकड़ ही बचा हुआ था, और ऐसा माना गया की उस लड़की ने सफ़ेद कंकड़ चुना था। और तभी से साहूकार की भी धोखेबाजी करने की हिम्मत नही हुई। और लड़की ने अपने दिमाग से खुद को भी बचा लिया और अपने पिता को भी बचा लिया। और असंभव को भी संभव कर दिया।
Moral of the story :- मुसीबत चाहे कितनी भी बड़ी क्यू ना हो, उसका उपाय (हल) जरुर होता है।

कभी-कभी मुसीबतों को हल करने के लिए हमें अलग तरीके से सोचने की जरुरत होती है।

Friday, 27 October 2017

शृंखला --- इतिहास भारत का कहानी -- “ छत्रपति शिवाजी महाराज के किले ”


शिवाजी महाराज, मराठा साम्राज्य के महान योद्धा थे। नियोजन के साथ उनके अच्छे प्रशासन ने उन्हें विजय की एक राह तक पहुंचाया। शिवाजी महाराज ने अपने शासनकाल में मराठवाड़ा के लगभग 360 किले जीते। उनमेंसे कुछ किले मुख्य हैं। आज हम यहाँ शिवाजी महाराज के उन्ही किलों – Shivaji Maharaj Fort के बारेमें जानेंगे।

Torna Fort – तोरणा किला:
तोरणा किला 16 साल की उम्र में शिवाजी महाराज ने जीता हुआ पहला किला हैं। जिसे प्रंचडगड के नाम से भी जाना जाता है। तोरणा किला,जिसे प्रंचडगड के नाम से भी जाना जाता है, यह महाराष्ट्र राज्य के पुणे जिले में स्थित एक बड़ा किला है। ऐतिहासिक रूप से महत्वपूर्ण है क्योंकि 1643 में शिवाजी महाराज ने 16 साल की उम्र में मराठा साम्राज्यका केंद्र बनने वाला यह पहला किला था। पहाड़ी में समुद्र के स्तर से ऊपर 1,403 मीटर की ऊंचाई है, जिससे यह जिले में सबसे ज्यादा पहाड़ी-किला बना रहा है।
माना जाता है कि यह किला 13 वीं शताब्दी में हिंदू भगवान शिव के अनुयायी शैव पंथ द्वारा निर्मित किया गया था। किले के प्रवेश द्वार के पास एक मेनघाई देवी मंदिर हैं , जिसे तुर्नाजी मंदिर कहा जाता है।1643 में, 16 साल की उम्र में शिवाजी महाराज ने इस किले पर कब्जा कर लिया, इस प्रकार यह पहला किला बनाकर मराठा साम्राज्य के किलों में से एक बन गया।
18 वीं शताब्दी में, शिवाजी महाराज के पुत्र संभाजी की हत्या के बाद मुगल साम्राज्य के मुगल सम्राट औरंगजेब ने इस किले का नियंत्रण प्राप्त किया, तब इस किले का नाम बदलकर फतुल्गैबरखा लेकिन उसके 4 साल बाद सरनोबत नागोजी कोकाटे ने इस किले पर चढ़ाई कर इस किले को फिर से मराठों के कब्जे में ले लिया।
Sinhagad Fort – सिंहगढ़ किला:
लगभग 2000 साल पहले बनाया सिंहगढ़ किला एक पहाड़ी किला हैं। यह किला पुणे शहर से लगभग 30 किमी दक्षिण पश्चिम में स्थित है। मुगलों के खिलाफ लड़ाई लड़ने के बाद, तानाजी मालुसारे ने अपना जीवन खो दिया। इस हानि से शिवाजी महाराज को बहुत दुःख हुआ और इस शोक में उन्होनें यह शब्द कहे, “गाड आला, पण सिंह गेला। यह मराठा इतिहास के पन्नों में आज भी अजरामर है।
ऋषि कौंडिन्या के बाद सिंहगढ़ किले को शुरू में कोंढाणाके नाम से में जाना जाता था। ईस्वी 1328 में दिल्ली के सम्राट मुहम्मद बिन तुगलक ने कोली आदिवासी सरदार नाग नायक से किले पर कब्जा कर लिया था।
शिवाजी के पिता मराठा नेता शहाजी भोंसले जो इब्राहीम आदिल शाह 1 के सेनापती थे और उन्हें पुणे क्षेत्र का नियंत्रण सौपा गया था लेकिन छत्रपति  शिवाजी महाराज को आदिल शाह के सामने झुकना मंजूर नहीं था इसलिए उन्होंने स्वराज्य की स्थापना करने का निर्णय लिया और आदिल शाह के सरदार सिद्दी अम्बर को अपने अधीन कर कोंढाना किले को अपने स्वराज्य में शामिल कर लिया। 1647 मेंछत्रपति शिवाजी महाराज ने इसका नाम बदलकर सिंहगढ़ रखा। लेकिन 1649 में शहाजी महाराज को आदिल शाह के कैद से छुड़ाने के लिए उन्हें इस किले को आदिल शाह को सौपना पड़ा।
इस किले ने 1662, 1663 और 1665 में मुगलों के हमलों को देखा। पुरंदर के माध्यम से, 1665 में किला मुगल सेना प्रमुख मिर्जाराजे जयसिंगके हाथों में चला गया। 1670 में, तानाजी मालुसरे के साथ मिलकर शिवाजी ने इसपर फिर से कब्जा कर लिया।
संभाजी महाराज की मृत्यु के बाद, मुगलों ने किले का नियंत्रण पुनः प्राप्त किया। सरदार बलकवडेकी अध्यक्षता में मराठों ने 1693 में इसे पुनः कब्जा कर लिया। छत्रपति राजाराम ने सातारा पर एक मोगुल छापे के दौरान इस किले में शरण ली, लेकिन 3 मार्च 1700 ई.पू. पर सिंहगढ़ किले में उनका निधन हो गया।
1703 में, औरंगजेब ने किले को जीत लिया लेकिन 1706 में, यह किला एक बार फिर मराठा के हाथों में चला गया। संगोला, विसाजी चापर और पंताजी शिवदेव ने इस युद्ध में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
किला मराठों के शासनकाल में 1818 तक बना रहा, इसके बाद अंग्रेजों ने इसे जीत लिया। इस किले पर कब्जा करने के लिए अंग्रेजों ने 3 महीने का समय लगा, उन्हें महाराष्ट्र में कोई किला जीतने के लिए इतना समय नहीं लगा।
              सिंहगढ़ की लड़ाई
सिंहगढ़ पर बहुत से युद्ध हुए उनमें से एक प्रसिद्ध युद्ध हैं जिसे मराठा साम्राज्य के छत्रपति शिवाजी महाराज के एक बहुत करीबी और शूरवीर योद्धा तानाजी मालुसरे ने किले को वापस पाने के लिए मार्च 1670 को लड़ा था।
किले की अग्रणी एक खड़ी चट्टान की यशवंतीनामक एक छिद्रित मॉनिटर छिपकली जिसे घोरपड़ कहा जाता था उसकी सहायता से रात के समय चढ़ाई की। इसके बाद, तानाजी, उनके साथी और मुगल सेना के बीच एक भयंकर लड़ाई हुई। इस लढाई में तानाजी मालुसरे ने अपना जीवन खो दिया, लेकिन उनके भाई सूर्याजीने कोंडाणा किले पर कब्ज़ा कर लिया जिसे अब सिंहगढ़ कहा जाता है।
Rajgad Fort – राजगढ़ किला:
राजगढ़ (शासित किला) भारत के पुणे जिले में स्थित एक पहाड़ी किला है। यह मराठा साम्राज्य की राजधानी है। उन्होंने यहां अपने जीवन का लगभग 26 वर्ष बिताए। 
राजगढ़ किला भारत के पुणे जिले में स्थित एक पहाड़ी किला है। मुरुमदेवके नाम से जाना जाने वाला यह किला 26से अधिक वर्षों तक मराठा साम्राज्य की राजधानी था। जिसके बाद राजधानी को रायगढ़ किले में स्थानांतरित किया गया था। किले पुणे के दक्षिण पश्चिम से 42 किमी दूर स्थित है।
राजगढ़ हाल के मराठा साम्राज्य में कई महत्वपूर्ण घटनाओं का साक्षी है। 1646 से 1647 के बीच शिवाजी महाराज ने आदिलशहा से तोरणा किले के साथ इस किले पर भी कब्जा किया था। शिवाजी महाराज ने किले का जीर्णोद्धार किया और फिर उन्होंने किले का नाम राजगढ़रखा।
राजगड किला आकार में तोरणा किले से बड़ा था और दृष्टिकोण के लिए बहुत कठिन था। शिवाजी महाराज ने तीन सैनिकों (मावडो) के साथ किलों को फिर से बनाया, जिन्हें सुवेला, संजवनी और पद्मावती माची कहा जाता है।
राजगढ़ ने कई युद्धों में 1660 में मुगल राजा औरंगजेब ने अपने कमांडर शाहिस्ते खान को राजगढ़ पर कब्जा करने के लिए भेजा था, लेकिन वह सफल नहीं हो सका।
1665 में राजगढ़ पर मुगल सरदारों ने हमला किया लेकिन वे मराठों से एक मजबूत लड़ाई में वे सफल नहीं हो सके।
जब शिवाजी महाराज को मुगलों ने जेल भेज दिया था तो वे 12 सितंबर 1666 को आगरा से बच गए, तब वे राजगढ़ लौट आए। शिवाजी महाराज के पहले बेटे राजाराम का जन्म 24 फरवरी 1670 को हुआ था।
1698 में बाल संभाजी महाराज की मृत्यु के बाद, अरुंगजेब के हाथ से राजाराम महाराज ने मराठा साम्राज्य का नियंत्रण लिया। 1671-1672 की अवधि में शिवाजी महाराज ने राजगढ़ से अपनी राजधानी रायगढ़ में स्थानांतरित कर दी और अपने सभी कार्यों को राजगढ़ से रायगढ़ स्थानांतरित कर दिया।
इस किले ने कई प्रमुख ऐतिहासिक घटनाओं को देखा है इसमें शिवाजी के बेटे राजाराम का जन्म, उनकी रानी साईबाई की मृत्यु, बाले कीला के महादरवाजे की दीवारों में अफजल खान के सिर को कब्रिस्तान, आगरा से शिवाजी की वापसी और बहुत कुछ शामिल है।
यह किला सबसे पहले अहमद बहरी निजामशाह द्वारा कब्जा कर लिया गया था और शिवाजी महाराज सहित कई हाथों में गया था। सभी के बाद, 1818 ईस्वी में राजगढ़ अंग्रेजों के हाथ में आया।
Shivneri Fort – शिवनेरी किला:
17 वीं शताब्दी का किला, शिवनेरी शिवाजी महाराज का जन्मस्थान है किले में देवी शिवाई देवी के छोटे मंदिर का नाम रखा गया है जिसके नाम पर उनका नाम रखा गया था।
शिवनेरी किला एक महान स्थान है जहां मराठा साम्राज्य के महान राजा छत्रपति शिवाजी महाराज का जन्म हुआ। यह किला महत्वपूर्ण ऐतिहासिक किलों में से एक है। शिवनेरी किला,भारत के पुणे जिले के जुन्नर के पास स्थित 17 वीं शताब्दी का एक सैन्य किला है।
जुन्नर का अर्थ है जर्ना नगर यह प्राचीन भारत के प्राचीनतम शहरों में से एक है जहां पर शाक राजवंश शासन किया। जुन्नर के आसपास के पहाड़ों में 100 से अधिक गुफाये है, उनमें से ही शिवनेरी किला एक है। जिस पहाड़ी पर यह किला बनाया गया है वह बहुत बड़ी खाड़ी द्वारा सुरक्षित है और यही कारण है कि यह एक किला बनाने के लिए सबसे उपयुक्त स्थान था।
यहां 64 गुफाएं और आठ शिलालेख पाए जाते हैं। शिवनेरी किले पर बहुत से शासको ने शासन किया, जैसे शिलाहारों, सातवाहन, बहामनियों, यादवों और फिर मुगल साम्राज्य1599 ईस्वी में शिवाजी महाराज के दादा, मालोजी भोसले और फिर छत्रपति शिवाजी महाराज के पिता शाहजी राजा को किला दिया गया था।
                   छत्रपति शिवाजी महाराज का जन्मस्थान
शाहजी राजे आदिल शाह, बीजापुर के सुल्तान की सेना में सेनापती थे। सतत युद्ध के वजह से शाहजी राजे अपनी पत्नी जिजाबाई की सुरक्षा के लिए चिंतित थे, जो उस समय गर्भवती थी। तो उन्होंने सोचा कि उनके लिए शिवनेरी किला सबसे अच्छी जगह होगी। यह संरक्षित और दृढ़ता से निर्मित गढ़ के साथ एकदम सही जगह थी, किले भीतर प्रवेश करने से पहले सात दरवाजे को पार करना होता है। किले की सीमा की दीवार दुश्मनों से किले की रक्षा करने के लिए बेहद ऊंची थी।
छत्रपति शिवाजी महाराज का जन्म 19 फरवरी 1630 को किले में हुआ और उन्होंने यहां अपना बचपन को बिताया था। इस किले में, उन्होंने महान राजा के गुणों और साम्राज्य का निर्माण करने के लिए आवश्यक रणनीतियां सीखी। वह अपनी माता जिजाबाई की शिक्षाओं से काफी प्रभावित हुए थे। छत्रपति शिवाजी महाराज की उपस्थिति से शिवनेरी पवित्र स्थान बन गया है।लेकिन छत्रपति शिवाजी महाराज को यह किला छोड़ना पड़ा और यह 1637 में मुगलों के हाथों में चला गया।
Vijaydurg Fort – विजयदुर्ग किला:
विजयदुर्ग, सिंधुदुर्ग तट पर सबसे पुराने किला हैं। यह एक सुंदर और अभेद्य समुद्र का किला हैं। विजयदुर्ग शिवाजी की सर्वश्रेष्ठ जीत मानी जाती है।
विजयदुर्ग का किला महाराष्ट्र में लोकप्रिय समुद्र किलों में से एक है। यह अभेद्य किला पश्चिमी महाराष्ट्र के सिंधुदुर्ग जिले के देवगढ़ तालुका में स्थित है। विजयदुर्ग किला तीन तरफ से समुद्र से घिरा हुआ है। यह शिवाजी महाराज की मराठा नौसेना का एक गढ़ बिंदु था। विजयदुर्ग का किला पुर्तगाली दस्तावेजों में मराठा नौसेना की शक्ति का प्रतीक था।
विजयदुर्ग किले को विजय किले के रूप में भी जाना जाता है 17 वीं शताब्दी में, शिवाजी महाराज ने शानदार किले की दीवारों, कई टावरों और विशाल आंतरिक इमारतों की तिहरी लाइन सहित शानदार सुविधाओं को जोड़कर किले को मजबूत किया।
जब किला आदिल शाह के कब्जे में था, उसका नाम गहरियाथा। 1653 में मराठा साम्राज्य के राजा शिवाजी महाराज ने इस किले को आदिल शाह से जीता और इसे विजय दुर्गनाम दिया। तब यह किला 5 एकड़ क्षेत्र में फैला हुआ था और सभी चार तरफ से समुद्र से घिरा हुआ था।
किले पर कब्जा करने के बादशिवाजी महाराज ने 17 एकड़ जमीन पर किले का विस्तार किया। प्रवेश द्वार के सामने एक खाई थी ताकि सामान्य लोग किले में प्रवेश नहीं कर सके। फिर भी ब्रिटिश, पुर्तगाली और डच के हमले लगातार होते रहते थे। हालांकि, 1756 तक किला मराठों के शासन के अधीन रहा।
लेकिन 1756 में किले का नियंत्रण खो दिया था जब ब्रिटिश और पेशवा ने किले पर संयुक्त रूप से हमला किया था।

विजयदुर्ग किला संरचना

विजयदुर्गा का यह किला भारत के सबसे मजबूत किला हैं जो समुंदर के बीच है। यह सिंधुदुर्ग जिले का यह सबसे पुराना किला है किले को 40 किमी की खाड़ी के कारण कब्जा करना बहुत मुश्किल था, जो कि जहाजों के लिए एक प्राकृतिक बाधा के रूप में काम करता था और किले की रक्षा करता था। मराठा युद्धपोतों को इस क्रीक में लंगर डालना था। ताकि दुश्मन उन्हें गहरे समुद्र से नहीं देख सके।
किला वाघोटन नदी के निकट स्थित है जो रत्नागिरी और सिंधुदुर्ग जिले के लिए सीमा के रूप में कार्य करता है।
यह किला मजबूत प्राचीन वास्तुकला का एक बढ़िया उदाहरण है। किला शिलाहार राजवंश के राजा भोज ने बनाया था। किले का निर्माण 1193 से 1205 के बीच हुआ।
गुफा: कुछ गुफा की संरचनाएं विजयदुर्ग किले के अंदर मौजूद हैं किले 3 सालों से समुद्र के द्वारा कवर किया गया है और अरब समुद्र के शानदार दृश्य प्रदान करता है।
एस्केनल टनल: आपातकाल के दौरान के लिए 200 मीटर लंबी सुरंग भी थी। इस सुरंग का एक और अंत गांव में धुलाप के महल घर में था।
झील: एक बड़ी झील भी है, जो कि किले पर रहने वाले लोगों के लिए मीठे पानी का मुख्य स्रोत था।
तोप बॉल्स: कुछ पुराने तोप गेंदों को भी किले के अंदर रखा गया है। आज भी, आप किले की दीवारों पर किले की दीवारों पर उडे स्पॉट देख सकते हैं।
दीवारें: यह किला तीनों की दीवारों के साथ एक विशाल किला है और इसमें 27 बुरुज हैं। किले का क्षेत्र लगभग 17 एकड़ है; सभी चीजें देखने के लिए लगभग 3 घंटे लगते हैं दीवारें बड़ी काली चट्टानों (लेर्तेइट्स) से बने हैं। किले की दीवारें लगभग 8 से 10 मीटर ऊंची हैं।
Raigad Fort – रायगढ़ किला:
महाराष्ट्र के इतिहास में एक युग का बना रायगढ़ किलामराठा साम्राज्य की राजधानी थी। यहाँ शिवाजी महाराज के शाही राज्याभिषेक मराठा साम्राज्य के आधिकारिक राजा के रूप में हुआ था। शिवाजी महाराज ने इस किले में अपना अंतिम सांस ली।
सह्याद्री पर्वत श्रृंखला में स्थित रायगढ़ किला समुद्र तल से 820 मीटर पर ऊपर है। इस किले में एक तरफ मार्ग से, कड़ी चढ़ाई पर पैदल यात्रा के माध्यम से पहुंचा जा सकता है, जबकि दूसरी तरफ से यह किला गहरे घाटियों से घिरा हुआ हैं।

रायगढ़ किले का इतिहास – Raigad Fort History

यह शानदार किला 1030 में चंद्रराव मोरे द्वारा बनाया गया था। उस समय यह किला रयरी का किलाके नाम से जाना जाता था लेकिन 1656 में छत्रपति शिवाजी महाराज ने प्राचीन मौर्य वंश के राजवंश चंद्रराव मोरे के इस किले पर कब्जा कर लिया। रायगढ़ किले को शिवाजी महाराज ने पुनर्निर्मित किया और रीयरी के किले का विस्तार किया और फिर इसका नामकरण रायगढ़के रूप में किया, जिसका अर्थ है कि राजा का किलायह मराठा साम्राज्य की राजधानी के रूप में भी माना जाता था।
1698 में, जुल्फिकार खान और औरंगजेब ने रायगढ़ पर कब्जा कर लिया और इसे इस्लामगडनाम दिया। 1765 में, किले ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा सशस्त्र अभियान का लक्ष्य बन गया। अंततः, 9 मई 1818 में कब्जे के बाद किले को ब्रिटिश द्वारा लूट लिया गया और नष्ट कर दिया गया।
Lohagad Fort – लोहगढ़ किला:
लोहगढ़ भारत में महाराष्ट्र राज्य के कई पहाड़ी किलों में से एक है। लोनावाला पहाड़ी स्टेशन और पुणे के 52 किमी उत्तर-पश्चिम के निकट स्थित, लोहगढ़ समुद्र तल से 1,033 मीटर ऊंचा है। शिवाजी महाराज द्वारा दो बार इस किले पर विजय प्राप्त करने के बाद, लोहागढ़ ने अपनी रणनीतिक स्थान के कारण इसकी प्रमुख महत्व रखी थी।
लोहगढ़ का इतिहास काफी गहरा है, अलग-अलग समय में अलग-अलग साम्राज्यों ने इसपर राज किया। जिनमे मुख्य रूप से सातवाहन, राष्ट्रकूट, यादव, चालुक्य, निज़ाम,बहमिंस, मुघल और मराठा शामिल है।
1648 CE में शिवाजी महाराज ने इसे अपने कब्जे में कर लिया लेकिन 1665 CE में पुरंदर की संधि के चलते शिवाजी महाराज को यह किला मुघल साम्राज्य को सौपना पड़ा। शिवाजी महाराज ने 1670 CE में इस किले को पुनः मराठा साम्राज्य में शामिल कर लिया था और इस किले का उपयोग वे अपने खजाने को रखने के लिए करते थे।
इस किले का उपयोग मराठा साम्राज्य में सूरत से लुटे हुए माल को रखने के लिए भी किया जाता था। बाद में पेशवा के समय में नाना फड़नवीस ने कुछ समय तक इसका उपयोग रहने के लिए किया और किले के अंदर विशाल टैंक और सीढियों का निर्माण भी करवाया।
Sindhudurg Fort – सिंधुदुर्ग किला:
सिंधुदुर्ग किला मराठा साम्राज्य के लिए एक शक्तिशाली किला हैं। यह समुद्र का किला अब एक सुंदर इतिहास बना हुआ है। सिंधुदुर्ग किला एक ऐतिहासिक किला है जो अरब सागर में एक आटलेट पर स्थित है। यह किला महाराष्ट्र के कोंकण क्षेत्र के सिंधुदुर्ग जिले के मालवान शहर के किनारे पर स्थित है, जो कि मुंबई के 450 किलोमीटर दक्षिण में स्थित है।
यह किला मराठा साम्राज्य के छत्रपति शिवाजी महाराज ने बनाया था। इस किले को बनाने का मुख्य उद्देश्य विदेशी व्यापारियों के बढ़ते प्रभाव का मुकाबला करने के लिए और जंजीरा के सिद्दी के उदय को रोकने के लिए था। 1664 में हीरोजी इंदुलकर के पर्यवेक्षण के तहत यह निर्माण किया गया था। किला एक छोटे से द्वीप पर बनाया गया था।
यह समुद्र किला 48 एकड़ में फैला हुआ है, जिसमें 3 किमी लंबी दीवार, और दीवारें हैं जो 30 फुट (9.1 मीटर ) उच्च और 12 फुट (3.7 मीटर) मोटी है। कास्टिंग में 4000 पाउंड का सीसा इस्तेमाल किया गया था और नींव की पत्थरों को मजबूती से निर्धारित किया गया था। इस किले को बनाने में तीन साल लगे। मुख्य प्रवेश द्वार इस तरह से छुपा हुआ है कि कोई भी इसे बाहर से देख नहीं सकता।
किले में रहने वाले स्थायी निवासियों में से अधिकांश निवासियों को अपर्याप्त रोजगार के अवसरों के कारण स्थानांतरित हो गए, लेकिन आज भी 15 से अधिक परिवार किले में रहते हैं।
Pratapgad Fort – प्रतापगढ़ किला:
प्रतापगढ़ सचमुच बहाल किलापश्चिमी भारत राज्य महाराष्ट्र में सातारा जिले में स्थित एक बड़ा किला है महाबलेश्वर से लगभग 25 किमी दूर और समुद्र तल से 1,080 मीटर दूर स्थित है। प्रतापगढ़ की लड़ाई के स्थल के रूप में महत्वपूर्ण, किला अब एक लोकप्रिय पर्यटन स्थल है। प्रतापगढ़ शिवाजी और शक्तिशाली अफजल खान के बीच मुठभेड़ के लिए प्रसिद्ध है।
नीरा और कोयना नदियों के किनारे की रक्षा के लिए प्रतापगढ़ किले का निर्माण करने के लिएमराठा साम्राज्य के राजा छत्रपति शिवाजी महाराज ने अपने प्रधान मंत्री मोरोपंत त्रिंबक पिंगले को नियुक्त किया। 1996 में प्रतापगढ़ किले का निर्माण पूरा हुआ। प्रतापगढ़ की लड़ाई महाराजा शिवाजी और अफजल खान के बीच 1659 में लड़ी गई। यह शिवाजी महाराज की पहली जीत थी।
प्रतापगढ़ का किला 2 भागों में विभाजित है। इनमें से एक को ऊपरी किला कहा जाता है जबकि दूसरे को कम किले कहा जाता है। ऊपरी किला का निर्माण एक पहाड़ी के शिखर पर किया गया था और लगभग 180 मीटर लंबा है, जिसमें कई स्थायी इमारतें हैं। किले के उत्तर-पश्चिम हिस्से की ओर स्थित भगवान महादेव का मंदिर है, जो कि 250 मीटर ऊंची ऊंचाई पर चट्टानों से घिरा हुआ है। दूसरी तरफ, किले के दक्षिण-पूर्व छोर पर निचले किले को ऊंचे टॉवर और गढ़ों से बचाया जाता है, जो 10-12 मीटर ऊंची है।
1661 में, शिवाजी महाराज तुलजापुर में देवी भवानी के मंदिर में जाने में असमर्थ थे। उन्होंने इस किले में देवी का एक मंदिर बनाने का निर्णय लिया। यह मंदिर निचले किले के पूर्वी भाग पर स्थित है। यह मंदिर पत्थर से बना है, और इसमें देवी की काली पत्थर की मूर्ति है।
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